इतना पुण्य का काम करने के बावजूद भोजन करने वाला व्यक्ति, कृष्णन को धन्यवाद तक नहीं देता, क्योंकि उसे पता ही नहीं होता कि कृष्णन उनके लिये क्या कर रहे हैं।
32.
इतना पुण्य का काम करने के बावजूद भोजन करने वाला व्यक्ति, कृष्णन को धन्यवाद तक नहीं देता, क्योंकि उसे पता ही नहीं होता कि कृष्णन उनके लिये क्या कर रहे हैं।
33.
धन स्थान से भोजन का ज्ञान होता है | यदि इस स्थान का स्वामी शुभ ग्रह हो और शुभ स्थिति में हो तो व्यक्ति कम भोजन करने वाला होता है |
34.
देवी भागवत में आता हैः सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक अरुतुन्द नामक नरक में वास करता है।
35.
इतना पुण्य का काम करने के बावजूद भोजन करने वाला व्यक्ति, कृष्णन को धन्यवाद तक नहीं देता, क्योंकि उसे पता ही नहीं होता कि कृष्णन उनके लिये क्या कर रहे हैं।
36.
१ ६) चातुर्मास में नित्य परिमित भोजन से पातकों का नाश और एक अन्न का भोजन करने वाला रोगी नही होता और एक समय भोजन करने से द्वादशः यज्ञ फ़ल मिलता है।
37.
मकर राशि में स्थित होने पर जातक विपत्तियों से घिरा हुआ, अशुभ कार्य करने वाला,, सज्जनों का शत्रु, लोभी, चच्चल, अधिक भोजन करने वाला तथा बंधु हीन होगा |
38.
सुखी कौन है? के प्रश्न के उत्तर में धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा-जिस पुरुष पर ऋण न हो, जो परदेश में न हो, और अपने घर शाक-पात का पका हुआ भोजन करने वाला संतोषी व्यक्ति सुखी है।
39.
(गीता ३ / १ ३) यज्ञ में बचा हुआ (यज्ञावशिष्ट) भोजन करने वाला सज्जन पाप कर्मों से मुक्त हो जाता है और जो मात्र अपने लिए बनाता और खाता है वह पाप खाता है।
40.
कांची में मलिन वेषधारी दिगम्बर रहा, लाम्बुस नगर में भस्म रमाकर शरीर को श्वेत किया, पुण्डोण्ड्र में जाकर बौद्ध भिक्षु बना, दशपुर नगर में मिष्ट भोजन करने वाला सन्यासी बना, वाराणसी में श्वेत वस्त्रधारी तपस्वी बना।