जब बल्ले को हाथ में लिया तो यह जानकर उसे बहुत गुस्सा आया कि ये बल्ले उस अंगू पेड़ से बने हैं जिसकी हल्की व मजबूत लकड़ी काटने के लिए उसके अपने वहाँ के अधिकारियों ने उन्हें मना कर दिया था जबकि उसके गाँव में इस पेड़ की लकड़ी को हल के लिए जुआ बनाने वास्ते लाते हैं.
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ढोल उत्तराखण्ड का पारम्परिक वाद्य है, शादी-विवाह, देवताओं के जागर और समस्त मांगलिक कार्यों में ढोल का इस्तेमाल किया जाता है, यह विजयसार की मजबूत लकड़ी का बना होता है, दो-ढाई फीट लम्बे और एक-डेढ़ फीट ऊंची लकड़ी को पहले अन्दर से खोखला किया जाता है और बांये पुड़े में बकरी की पतली खाल और दांयें पुडे़ में भैंस की खाल का प्रयोग किया जाता है और दोनों पुडों को आपस में डोरियों से कसा जाता है।
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जब भी बहुऍं आतीं वे काकी से कहतीं कि अनावश्यक सामान की छॅटनी कर देते हैं और कबाड़ी को दे देते हैं पर छाँटते वक्त कभी किसी सामान को काका रोक लेते, “अरे, इतनी मजबूत लकड़ी का बना पलंग है, शीशम पर नक्काशी का पलंग आज बनवाने जाओ भाव पता चल जाएगा।” कभी किसी सामान को काकी रोक लेतीं, “यह बड़ा सन्दूक मेरी सास के हाथ है कितने साल इसमें मेरी शादी का जोड़ा रखा था।” सन्दूक फिर जगह पर जम जाता।