इस पर कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में राज्य की उत्पत्ति की आवश्यकता के संबंध में वर्णन करते हुए लिखा है कि-प्राचीन काल में मत्स्य-न्याय (अर्थात सृष्टि प्रारंभ के बहुत समय पश्चात जब व्यक्ति की सतोगुणी वृत्ति के स्थान पर प्रधान राक्षसी तमोगुणी वृत्ति बलवती हो गयी, तो बलवान निर्बल को उसी प्रकार खाने, सताने और उत्पीडि़त करने लगा, जिस प्रकार बड़ी मछली छोटी को खा जाती है, इसी को मत्स्य न्याय कहा जाता है।