ऋतुराज का मदमाता यौवन...! सोलह शृंगार सजी पीतवसना प्रकृति रानी...!! अलस मधुमास....!!! आज पुनः मुझे खींचे लिए जाता है मेरे गाँव।
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पलाश के नारंगी और सखुआ फूलों के श्वेताभ सौन्दर्य से मदमाता जंगल, झरने का अलौकिक संगीत और प्रकृति की लुका छिपी ।
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पलाश के नारंगी और सखुआ फूलों के श्वेताभ सौन्दर्य से मदमाता जंगल, झरने का अलौकिक संगीत और प्रकृति की लुका छिपी ।
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फिर तो खूब हुआ जोगीरासा...रा...रा...रा...रा...!! नयी दुल्हन की तरह कुसुम रंग चुनर ओढ़े हमारा गाँव फागुन मद में मदमाता हुलास भर रहा था।
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ठीक ' एकला चलो रे' के माफिक यह दीप अकेला स्नेह भरा है गर्व भरा मदमाता पर इसको भी पंक्ति को दे दो यह जन है:
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सब कुछ व्याख्या, तर्क, बुद्धि के आश्रय में खो गया है-मैं भी अपनी इसी एकतान बुद्धिगामी अवस्था में मदमाता फिर रहा हूं ।
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हमने कितना.......: हमने कितना प्यार किया था अर्ध्द-रात्रि में तुम थीं मैं था मदमाता तेरा यौवन था चिर-भूखे भुजपाशो में बंध, अधरों का रसपान किया था हमने क...
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अपने पवित्र होने का एहसास आदमी को ऐसा मदमाता है कि वह उठे हुए सांड की तरह लोगों को सींग मारता है, ठेले उलटाता है, बच्चों को रगेदता है।
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अपने पवित्र होने का एहसास आदमी को ऐसा मदमाता है कि वह उठे हुए सांड की तरह लोगों को सींग मारता है, ठेले उलटाता है, बच्चों को रगेदता है.
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अपने पवित्र होने का एहसास आदमी को ऐसा मदमाता है कि वह उठे हुए सांड की तरह लोगों को सींग मारता है, ठेले उलटाता है, बच्चों को रगेदता है.