मध्यकालीन साहित्य भाषा युग में हिन्दी कवियों कबीर, तुलसी, सूर, मीरा का बांगला साहित्य और भाषा पर पर्याप्त प्रभाव पड़ा है।
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यदि पूरे मध्यकालीन साहित्य को लोकजागरण का साहित्य मान लिया जाय तो तुलसीदास का पुनरुत्थानवादी स्वर अपने आप लोकजागरण में अंतर्भुक्त हो जायगा।
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यदि पूरे मध्यकालीन साहित्य को लोकजागरण का साहित्य मान लिया जाय तो तुलसीदास का पुनरुत्थानवादी स्वर अपने आप लोकजागरण में अंतर्भुक्त हो जायगा।
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यही कारण है कि वह हिंदी के आदिकालीन और मध्यकालीन साहित्य से घबराता है-कुछ लोकप्रिय कवियों की सरल कविताओं के अलावा.
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इस क्रम रामविलास शर्मा ने प्रगतिशील लेखक संघ के 1936 और 1938 के घोषणापत्रों में व्यक्त मध्यकालीन साहित्य संबंधी दृष्टिकोण्ा का भी खण्डन किया है।
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मिलानेसी, ने डॉ. पांडेय के सम्मान में एक कविता पढ़ते हुए कहा इटली के सभी विद्वान उन्हें मध्यकालीन साहित्य विषय पर अपना गुरू मानते है।
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इसीलिए जब उनके निधन का समाचार सुना तो १० दिसंबर को ये तमाम लेखक और साहित्य प्रेमी नजीबाबाद में मध्यकालीन साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान डॉ.
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भाषा सम्मान पाने वाले लेखकों में पंजाबी सूफी साहित्य विशेषज्ञ डॉ. गुरुदेव सिंह तथा दक्षिण भारत के क्लासिक एवं मध्यकालीन साहित्य के लिए प्रो.
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आप भारतीय मध्यकालीन साहित्य को ही ले लें, सूर, तुलसी, जायसी या आधुनिक काल के निराला, प्रसाद, टैगोर या अन्य बड़े कवि....
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Zborników (धार्मिक ब्रीफिंग में सेवारत अलग पटरियों के संग्रह) मध्यकालीन साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान ले लिया Apocrypha, hagiographies, जानकारीपूर्ण और वीर दास्तां.