क्या दुनिया इस तरह ख़त्म होगी? धर्मग्रंथों ने तो हमें बताया है कि एक क़यामत का दिन होगा, कोई जजमेंट-डे होगा, कोई महाप्रलय होगी, जिस दिन मुर्दे अपनी क़ब्रों से निकल आएंगे और आखि़री मर्दुमशुमारी होगी, सबके किए का हिसाब किया जाएगा, ठीक उसी समय आफ़्टरलाइफ़ के अलग-अलग दायित्व सौंपे जाएंगे, नई दिशाएं और नए गंतव्य बताए जाएंगे, जो निश्चित ही इस फ़ानी दुनिया से अलहदा होंगे।
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इसके लिए अब तक की खोजबीन में मालूम हुआ कि प्रत् येक तीस वर्षों में ऐसे अध् ययन हुए हैं, 1931 और 1961 का तो दस् तावेजी प्रमाण मिल गया, लेकिन मानविकी-संस् कृति के और क् या अध् ययन-प्रकाशन, कब-कब हुए, अब भी होंगे, पता न लग सका सो वापस मर्दुमशुमारी उचारते बाल-औचक हूं कि हम सभी एक-एक, बिना चूके गिन लिए जाएंगे।
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जिस दौर में ब्राह्मण लोग फोर्ट विलियम के साहबों को यकीन दिला रहे थे कि उनकी जाति केवल कर्मकांडपरक संदर्भ में नहीं, बल्कि सामाजिक व्यवहार मात्र में सर्वोच्च मानी जाती है, जिस समय सेंसस कमिश्नर रिज्ले साहब रक्त शुद्धि का निर्धारण करने के लिए इंची टेप से लोगों की नाकें नाप रहे थे ; उसी समय मारवाड़ रियासत की ‘ मर्दुमशुमारी ' (1891) के आधार पर मारवाड़ रियासत के पचीस लाख बाशिंदों की “
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जब मर्दुमशुमारी हो रही थी तो सरकारी नज़र सिर्फ शहरी इलाके में कार्यरत महिला मजदूरों पर जा कर टिक गयी. जिनका प्रतिशत महज़ १५ है.जबकि चूल्हा-चक्की, बाडी-खेत में पिसती असंगठित क्षेत्र में करीब ८६-८७ फीसदी औरतें हैं.युएनो की रपट के मुताबिक औरतें फसल कटाई के बाद उसकी गदाई.कभी दूसरी जगह से पानी का जुगाड़, जानवरों को सानी देना, बच्चों की देख-भाल खाना बनाना आदी काम करती हैं.उन्हें काम की शक्ल में नहीं देखा जाता.और बड़े सामंत या मजदूर ठेकेदारों द्वारा अस्मत से खिलवाड़ की रोज़ नौबत या बलात-कर्म!!
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मर्दुमशुमारी आज एक नए शब्द की जानकारी मिली शुक्रिया | हाँ हमारे यहाँ भी दो, तीन दिन पहले ही जनगणना वाले आये थे इतना कुछ पूछा जिसकी जानकारी हमें थी ही नहीं पर हमनें तो फिर भी बता दी | मेरे भाई को भी जनगणना करने का काम सोंपा गया है वो बता रहा था गाँव के लोगों को तो अपनी जन्म तिथि भी मालूम नहीं और उसमे शादी की तारीख माँ की जन्म तिथि सब पूछा गया है | पता नहीं सही जानकारी कैसे एकत्र की जाएगी | अच्छी जानकारी देती पोस्ट |