ऐसे में चंद्रपुर से महज 35 किमी दूर कोरपना तहसील अंतर्गत कारवा (कारवाई) में महापाषाण काल के बौद्ध धर्म अधीनस्थ हिनयान पंथियों की दो गुफाएं होने का दावा किया गया है।
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ईसा पूर्व पहली सहस्राब्दि के दौरान मध्य और दक्षिण भारत में शवों के अंतिम संस्कार के नए तरीके भी सामने आए, जिनमें महापाषाण के नाम से ख्यात पत्थरों के बड़े-बड़े ढाँचे मिले हैं।
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उस जमाने में लोग शवों को मिट्टी के बड़े शवाधानों में रखकर लम्बे चौड़े गड्ढों में रख देते थे और उपर बडे बड़े पाषाण खड़े कर देते थे, इसलिए उनकी संस्कृति को महापाषाण संस्कृति का नाम दिया गया ।
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हम बुर्ज़होम महापाषाण की सभ्यता के वास्तविक क्षितिज़ को नहीं जानते, न ही उद्देश्य जिसके के लिए वे निर्मित हुए थे, लेकिन संकेत है कि ४०० से ३००ई. पू., वे उस कार्य स्थल पर नव पाषाण काल की समाप्ति की ओर उस स्थान पर रखे गए थे।