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मानव-विकास उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
31.जैसे परमाणुओं के होने व उनके लक्षणों को जानने के लिए या मानव-विकास की परिघटना को समझने के लिए अनुमान द्वारा ही क्रमवार, लेकिन तर्क से जुड़े, कथनों-निष्कर्षों का सहारा लिया जाता है।

32.लेकिन उत्तर-पूर्व के राज्य आर्थिक दृष्टि से मध्य और उत्तर भारत के ग़रीब राज्यों के निकट हैं जबकि शिक्षा के स्तर और अन्य मानव-विकास सूचकांकों के हिसाब से विकसित दक्षिण भारतीय राज्यों के निकट हैं।

33.बाल-विकास या मानव-विकास का सबसे मज़बूत घटक है सुखी, संतुष्ट, जिम्मेदारीपूर्ण पारिवारिक और वैवाहिक जीवन जो कि संयुक्त परिवार के टूटने और जीवन में उपभोक्तावादी, बाजारवादी धारणा आने से समाप्त सा हो चला है ।

34.किसी एक पर अंतिम सत्य की मुहर लगाए बिना सभी रूपों में सत्य को स्वीकार करने, ग्रहण करने की तत्परता, शुध्द व पवित्र जीवन जीकर मानव-विकास के उच्चतर सोपान पर पहुँचने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

35.सामाजिक बंधनों तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता, मानव-विकास तथा समाज में स्त्री का स्थान, सामन्तशाही, पूँजीवाद, साम्राज्यवाद, समाजवाद, साम्यवाद इत्यादि विभिन्न विषयों को छू रही हैं और इन पर वे लगातार बोल रहे हैं।

36.किसी एक पर अंतिम सत्य की मुहर लगाए बिना सभी रूपों में सत्य को स्वीकार करने, ग्रहण करने की तत्परता, शुध्द व पवित्र जीवन जीकर मानव-विकास के उच्चतर सोपान पर पहुँचने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

37.किसी एक पर अंतिम सत्य की मुहर लगाए बिना सभी रूपों में सत्य को स्वीकार करने, ग्रहण करने की तत्परता, शुध्द व पवित्र जीवन जीकर मानव-विकास के उच्चतर सोपान पर पहुँचने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

38.यह भी एक विचारणीय विषय है कि औद्योगिक क्रान्ति से पहले का जो मानव-विकास का युग रहा है, उसमें जो बुद्धिमान लोग रहे हैं और औद्योगिक क्रान्ति के युग में जो बुद्धिमान विद्वान पैदा हुये हैं, उनमें क्या अन्तर है?

39.क्या साहित्य सांप्रत जन-मानस का प्रतिबिंब नहीं? प्राचीन मानव सभ्यताओं के अभ्यास से यह ज़रुर महसुस होता है कि मानव-विकास का हर उत्तर-कांड उसके पूर्व-कांड से श्रेष्ठ हो ऐसा ज़रुरी नहीं; अर्थात् वैदिक काल की कुछ एक बातें अर्वाचीन युग को सर्वथा मार्गदर्शक हो सकती है, और उसे सर्वांगी मानव उत्थान के अभियान में प्रेरक बन सकती है ।

40.क्या साहित्य सांप्रत जन-मानस का प्रतिबिंब नहीं? प्राचीन मानव सभ्यताओं के अभ्यास से यह ज़रुर महसुस होता है कि मानव-विकास का हर उत्तर-कांड उसके पूर्व-कांड से श्रेष्ठ हो ऐसा ज़रुरी नहीं ; अर्थात् वैदिक काल की कुछ एक बातें अर्वाचीन युग को सर्वथा मार्गदर्शक हो सकती है, और उसे सर्वांगी मानव उत्थान के अभियान में प्रेरक बन सकती है ।

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