| 31. | नारी इस धरा की धरोहर है, मानव-समाज की आन है।
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| 32. | अखंड रूप में मानव-समाज को पहचानना ही एक मात्र उपाय है।
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| 33. | मानव-समाज की परिधि से बाहर बढक़र पशु-पक्षियों (जीव-मात्र) को भी घोर
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| 34. | मानव-समाज मूल्यों को छोड़ता गया और लाभ पर केंदि्रत हो गया।
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| 35. | इसीलिए विकास चँहुमुखी हो इसका विशेष प्रयास अपेक्षित है मानव-समाज को।
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| 36. | यह युग मानव-समाज के विकास में एक विराट परिवर्तन का युग है।
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| 37. | इस रूप में मानव-समाज की समृद्धि का यह मूल आधार है ।
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| 38. | राष्ट्रीय परिधि, ऊँच-नीच वाद और विधर्म से परे मानव-समाज की रचना के
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| 39. | यथा: प्रलय का समय निकट आने पर मानव-समाज की स्थिति क्या होगी?
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| 40. | बनायी जाये और सदा के लिए मानव-समाज से वर्ग-विभेद मिटा दिया जाये।”
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