इसके प्रमाण केवल महाराष्ट्र राज्य में पिछले तीन सालों में सतीशसेट्टी, अरुणसावंत, विट्ठलगीते, दत्तात्रेयपाटील, रामदासघडगेगांवकर, यशवंत सोनवणे, प्रेमनाथ झा, डे जैसे व्यक्तियों की हत्या जो समाज में फैली मानसिक जड़ता के खिलाफ संघर्ष थे।
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माता के वयवाली, तपस्विनी ऋषि-पत्नी को पाँव से स्पर्श करना मर्यादा के अंतर्गत नहीं आता, राम स्वयं उनके चरण-स्पर्श कर उन्हें उस मानसिक जड़ता से उबारते और उनकी निर्दोषिता प्रमाणित करते तो उनका चरित्र नई ऊँचाइयों को छू लेता ।
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उस की स्थिति ऐसेव्यक्ति की थी जो जानता था कि सागर की आती हुई लहर से वह टकराएगा, तो उसकाअस्तित्व ही नहीं रह पाएगा, किंतु फिर भी अपनी शारीरिक और मानसिक जड़ता के कारण, वह लहर के सामने से हट जाने का भी प्रयत्न नहीं कर पा रहा था.
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इस कथा में मिट्टी के सैनिकों में प्राण डालने के रुप में प्रतीकात्मक संदेश है कि उस समय मानसिक जड़ता और शारीरिक रुप से कर्महीनता के कारण शत्रुओं के आक्रमण से भयभीत लोगों में विश्वास और उनकी आत्म शक्ति को जगाना, जो आज के समाज के लिए भी एक प्रेरणा है।
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अन्यथा याद कीजिये ९ ० या उसके पहले का वह जमाना जब मुख्यधारा के वामपंथी छात्र संगठन इस परिवेश में हावी थे तो क्या दक्षिणपंथ के लिए इतनी गुंजाइश थी अथवा ना कहने पर व्यक्तिगत संबंधो में हिंसा का इस तरह का तांडव था! दरअसल यह मैखिक और शाब्दिक हिंसा का विस्तार ही है जो लम्बे मानसिक जड़ता प्रशिक्षण के बाद शरीरिक हिंसा में परिवर्तित हो रहा है!