गाँव में जो राशन की सरकारी दुकान (निशा सरकारी गल्ले की दुकान) है उसका मालिक जीतेन्द्र कुमार मेरे माता पिता को पिछले कुछ समय से उस राशन को देने से मना कर रहा है जो मासिक तौर पर सरकार की तरफ से गरीबो को दिया जाता है.
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उन् होंने इस बात पर अफसोस जताया कि ज् यादातर जिलों में उन् होंने ऐसे संवाददाता पाए जिन् हें पारिश्रमिक बतौर या तो कुछ भी नहीं था या फिर महज पांच सौ रुपये मासिक तौर पर मिलते हैं और उसके अलावा उन पर विज्ञापन लाने का दबाव होता है.
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यदि मैं कलकत्ता में रहता हूँ तो खाटू में बैठे श्याम की कृपा के लिए मुझे ५ ०० रुपये चुकाने होंगे और घुसरी धाम में बैठे श्याम बाबा को ५ ० रुपये और इनकम टैक्स के रूप में आपकी कमाई का १ ० प्रतिशत भगवान के एजेंट के पास मासिक तौर पर जमा करवाने होंगे.