| 31. | पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पण्डित भया न कोय।
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| 32. | मुआ जंगी आज मुझसे कहता था...
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| 33. | (एक असमाप्त प्रेम कविता) पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ....
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| 34. | “ई मुआ, फोन काहे नाही बजत हए?”
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| 35. | जहां देखो वहां, मुआ जैनरेशन गैप।
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| 36. | हमारी टिप्पणी तो मुआ लाल कपडा बन गयी...
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| 37. | बहुत सारी मुसीबतों की जड़ है ये मुआ सेकुलरवाद
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| 38. | पोथी पढ पढ जग मुआ पंडित भया न कोय
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| 39. | मुआ दिल का क्या? गुल तो खिलाता ही
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| 40. | बहुत सारी मुसीबतों की जड़ है ये मुआ सेकुलरवाद
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