यहाँ पर प्रश्न-प्रतिप्रश्न व उत्तर-प्रतिउत्तर के के उल्लेख-नामोल्लेख से बचते हुए एक प्रतिभागी के रूप में अपने अनुभव को साझा करने के उपक्रम में मुझे यह कहना है कि ' कविता समय ' का यह आयोजन एक कवि मिलन या कवि सम्मीलन भर नहीं था जैसा कि फेसबुक जैसे मंचों पर एकाध जगह देखने-पढ़ने को मिला।
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विद्वानों से क्षमा सहित मुझे यह कहना है कि उत्सुकजनों के सामने साहित्य के नाम पर पहले पाठ्यक्रम आते हैं फिर आता है बाज़ार! जो कुछ हासिल होता है उसमें एक तो चिकने पृष्ठों पर सस्ती फिसलन भरी कृतियां जो मनोरंजन करती हैं, मनोरंजन साहित्य की एकक विशेषता हो सकती है लेकिन सिर्फ मनोरंजन साहित्य की एक विशेषता हो सकती है लेकिन सिर्फ मनोरंजन साहित्य नहीं हो सकता ।
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विद्वानों से क्षमा सहित मुझे यह कहना है कि उत्सुकजनों के सामने साहित्य के नाम पर पहले पाठ्यक्रम आते हैं फिर आता है बाज़ार! जो कुछ हासिल होता है उसमें एक तो चिकने पृष्ठों पर सस्ती फिसलन भरी कृतियां जो मनोरंजन करती हैं, मनोरंजन साहित्य की एकक विशेषता हो सकती है लेकिन सिर्फ मनोरंजन साहित्य की एक विशेषता हो सकती है लेकिन सिर्फ मनोरंजन साहित्य नहीं हो सकता ।
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इसलिए ' नत्था ' के अभिनय के बारे में कुछ नहीं कह पाऊंगा, फिर भी नत्था जी ने अपने संघर्ष अपनी मेहनत और अपनी शोहरत से देश-विदेश में छत्तीसगढ़ का नाम ऊंचा किया है, यह निश्चित रूप से बहुत बड़ी बात है, लेकिन आपके आलेख के आधार पर मुझे यह कहना है कि ओंकार दास को ' नत्था ' बनाने में और कामयाबी के इस मुकाम तक पहुंचाने में हबीब तनवीर और आमिर खान जैसी हस्तियों का बहुत बड़ा योगदान है.