ये बाज़ारजनित मुनाफ़ाखोरी का नतीजा है और इसके लिए मीडियापति भी उतने ही दोषी हैं क्योंकि वे अपनी धन-लिप्सा पर नियंत्रण नहीं रख पा रहे हैं।
32.
इसमें ना तो पूरी तरह मुनाफ़ाखोरी में बदलती पत्रकारिता पर कोई सवाल उठाया गया और न ही पूंजी पर टिकी चुनाव व्यवस्था की पोल खोली गई.
33.
इस पूरी घटना से एक बात साफ़ हो गई कि मुनाफ़ाखोरी पर टिका कॉरपोरेट मीडिया पैसे वाले राजनीतिज्ञों के साथ मिलकर सत्ता की सौदेबाज़ी करता है.
34.
लेकिन पूँजीवाद मुनाफ़ाखोरी की जो अंधी हवस पैदा करता है उसका परिणाम अपरिहार्य रूप से आर्थिक, सामाजिक और नैतिक संकट के रूप में सामने आता है।
35.
बड़ी और विदेशी पूंजी के सहारे चल रहीं मीडिया कंपनियां सामाजिक सरोकारों की अनदेखी कर पत्रकारिता को धंधेबाज़ी और मुनाफ़ाखोरी का पर्याय बनाने पर तुली हुई हैं.
36.
इससे ज़ाहिर होता है कि पब्लिक सेक्टर की कंपनियां भी इस दौर में जनहित और मानव विकास की बजाय मुनाफ़ाखोरी और बृद्धि दर बढ़ाने में जुटी हुई हैं.
37.
कि कारपोरेट सेक्टर और अमीरों की रखवाली का ठेका लेने वाली कोई एजेंसी? कि पूरी अर्थव्यवस्था सिर्फ़ एक सच मुनाफ़ा और सिर्फ़ मुनाफ़ाखोरी में तब्दील है?
38.
बड़ी और विदेशी पूंजी के सहारे चल रहीं मीडिया कंपनियां सामाजिक सरोकारों की अनदेखी कर पत्रकारिता को धंधेबाज़ी और मुनाफ़ाखोरी का पर्याय बनाने पर तुली हुई हैं.
39.
इससे ज़ाहिर होता है कि पब्लिक सेक्टर की कंपनियां भी इस दौर में जनहित और मानव विकास की बजाय मुनाफ़ाखोरी और बृद्धि दर बढ़ाने में जुटी हुई हैं.
40.
क्या यह “ अनैतिक मुनाफ़ाखोरी ” नहीं है? इतना भारी मुनाफ़ा कमाते समय इस्लाम, हदीस, कुरान आदि की सलाहियतें और शरीयत कानून वगैरह कहाँ चला जाता है?