परन्तु सरकार लगता है इस सभी प्रकरण के लिए पाकिस्तान के अतिवादी तत्वों द्वारा संचालित सोशल मीडिया को जिम्मेदार बता कर फिर इस गंभीर समस्या से आंख मूंदना चाहती है।
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(ऐसा सोचना) जान-बूझकर आँखें मूंदना है| या नेहरू साहब केवल सरकार को भयभीत करने के लिए ही पूर्ण स्वतंत्रता का शोर मचाते रहते हैं और चाहते अधीन राज ही हैं?
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ऐसे समय में, जब भारतीय मीडिया पर क्रोनी जर्नलिज्म का आरोप लगाया जा रहा है और पत्रकारों को झूठी शांति का हलावा देते हुए इस तरह की घटनाओं से आंखें नहीं मूंदना चाहिए।
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मानवीयता की दुहाई देकर बेशक कुछ लोग इस तथ्य से आंख मूंदना चाहें, लेकिन आर्थिक आधार पर बंटी इस दुनिया के मानवीय संबंधों का मूल कुछ ऐसी ही सच्चाई को हमारे सामने रखता है।
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मानवीयता की दुहाई देकर बेशक कुछ लोग इस तथ्य से आंख मूंदना चाहें, लेकिन आर्थिक आधार पर बंटी इस दुनिया के मानवीय संबंधों का मूल कुछ ऐसी ही सच्चाई को हमारे सामने रखता है।
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आज संविधान के वायदों और निहितार्थो तथा प्रजातंत्र की वास्तविकताओं तथा व्यवहार में जो अंतर भयावह रूप से हर भारतीय के सामने आकर खड़ा हो गया है उससे अब और आंख मूंदना देश के लिए घातक होगा।
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कृषि नीति, शहरीकरण, सीलिंग कानून, जमींदारी विनाश कानून तथा पूँूजीवादी व्यवस्था और इसके संवाहक अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान-विश्व बैंक, ए.ड ी. बी., डी. एफ. आई. डी. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की बैठायी जा रही जुगतों से आँख मूंदना भूमि-अधिग्रहण की समस्या को और विकराल बनायेगा।
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अब दिन भर की उदासियों को, अपनी उँगलियों से छू, जब जा पाता हूँ सोने, मेरी आँख में तैरती रहती हैं, बिना पलक की मछलियां, जिन्हें मूंद्नी नहीं पड़ती पलकें सोने को, कि पलकों का मूंदना होता सोना, तो हर सुबह अंगडाई तोड़ उठती दुनिया. सच जाग ही जाती.
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तो क्या होता है उस खेल का अंजाम? बहुसंख्य सोच की दृष्टि से देखें तो वर्ग के आधार पर दो विपरीत ध्रुवों पर खड़े दो सर्वदा भिन्न तबियत वाले व्यक्तियों के बीच में अगर कोई संबंध हो भी सकता है तो वह मूल रूप से बिल्कुल ऐसा ही होगा! मानवीयता की दुहाई देकर बेशक कुछ लोग इस तथ्य से आंख मूंदना चाहें, लेकिन आर्थिक आधार पर बंटी इस दुनिया के मानवीय संबंधों का मूल कुछ ऐसी ही सच्चाई को हमारे सामने रखता है।