अमेरिका के न्यूजर्सी प्रान्त में छोटा भारत यानि एडिसन में बड़ती भारतीयों की संख्या को लेकर टाईम्स पर एक आलेख छपा था, इसी आलेख के संदर्भ में इन्होंने एक पोस्ट लिखी थी-मृण्मय तन, कंचन सा मन, जिसकी शुरूआत कुछ इस तरह थी-
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उनके वचनों का हम पूरी तरह पालन नहीं कर पाते, पर ऐसा तभी होता है जब हम अपने सत्यस्वरूप को भुला देते हैं, ज्ञान की उस ऊंचाई से नीचे गिर जाते हैं, समता में स्थित नहीं रह पाते, स्वयं को पल-पल बदलने वाला मृण्मय शरीर मान लेते हैं.
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भूत-जगत में दिव्यत्व-संचारिणी. कलुषों की निवृत्ति, मन की परिष्कृति, अंतरात्मा की परितृप्ति हो तुम, सुकृति-विकृति तक परिणामित मूलप्रकृति तुम, साथ ही उस परम चिति की इस नश्वर तन में अवतरित साधक के मृण्मय तन में करती हो तेजोमयी ऊर्जा का अजस्र प्रवाह जिस में विहरती दिव्यता चिदानन्द बन कर स्वरों में फूट पड़ती है.
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प्रौढ़ वर्ग अपना निशाना साहित्य में वीर रस को खोजते हुए दिखाई देता है, ये वर्ग भारत की चेतनाओं को अपनी बह्र {उर्दू साहित्य में ग़ज़ल के लिए प्रयुक्त मीटर} और छंद से जगाने की चेष्टा करते हैं, तथा इसे ही मृण्मय से चिन्मय की यात्रा कहते हुए, कारगिल प्रसंग दोहराने मे मसरूफ रहना पसंद करते हैं।
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ग्रीनपीस इंडिया के क्लाइमेट इनर्जी कैम्पेनर मृण्मय चटर्जी ने इस मौके पर बोलते हुए कहा कि “ टेलिकॉम सेक्टर में हो रहे विकास को देखते हुए जरूरी है कि इसकी उर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने के लिए टेलिकॉम सेक्टर यहां दिये गये सुझावों को समझे और उन्हें अपनी उर्जा जरूरतों के लिए लागू करे.
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देखो, सच यही है की मनुष्य मृण्मय और चिन्मय का जोड़ है | जो देह का और उसकी वासनाका अनुसरण करता है, वह नीचे-से-नीचे अंधेरो मे उतरता जाता है और जो चिन्मय के अनुसन्धान मे रत होता है, वह अंतत सच्चिदानंद को पाता और स्वयं भी वही हो जाता है | ” ठीक ही तो है | प्रज्ञा पुराण भी तो यही कहता है |अखंड ज्योति जुलाई 2001आप भी हमारे सहयोगी बने।
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इसके अलावा शिवनाथ नदी के किनारे, सिथत मृण्मय किलों में दुर्ग शहर के नयापारा में सिथत बाघेरा ग्राम के समीप निर्मित मृण्मय गढ़, धमधा शहर के मध्य सिथत महामाया मंदिर एवं चौघडि़या तालाब के समीप निर्मित मृण्मय गढ़, ग्राम डमरू जिला रायपुर, में विद्यमान मृत्तिका गढ़ तथा रसेड़ा ग्राम के समीप निर्मित मृत्तिका गढ़ की प्राप्ति महत्वपूर्ण हैं जहां से कुषाण काल सें लेकर कलचुरी काल तक के मृण्मय पात्र के टुकड़े प्राप्त हुये हैं ।
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इसके अलावा शिवनाथ नदी के किनारे, सिथत मृण्मय किलों में दुर्ग शहर के नयापारा में सिथत बाघेरा ग्राम के समीप निर्मित मृण्मय गढ़, धमधा शहर के मध्य सिथत महामाया मंदिर एवं चौघडि़या तालाब के समीप निर्मित मृण्मय गढ़, ग्राम डमरू जिला रायपुर, में विद्यमान मृत्तिका गढ़ तथा रसेड़ा ग्राम के समीप निर्मित मृत्तिका गढ़ की प्राप्ति महत्वपूर्ण हैं जहां से कुषाण काल सें लेकर कलचुरी काल तक के मृण्मय पात्र के टुकड़े प्राप्त हुये हैं ।
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इसके अलावा शिवनाथ नदी के किनारे, सिथत मृण्मय किलों में दुर्ग शहर के नयापारा में सिथत बाघेरा ग्राम के समीप निर्मित मृण्मय गढ़, धमधा शहर के मध्य सिथत महामाया मंदिर एवं चौघडि़या तालाब के समीप निर्मित मृण्मय गढ़, ग्राम डमरू जिला रायपुर, में विद्यमान मृत्तिका गढ़ तथा रसेड़ा ग्राम के समीप निर्मित मृत्तिका गढ़ की प्राप्ति महत्वपूर्ण हैं जहां से कुषाण काल सें लेकर कलचुरी काल तक के मृण्मय पात्र के टुकड़े प्राप्त हुये हैं ।
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इसके अलावा शिवनाथ नदी के किनारे, सिथत मृण्मय किलों में दुर्ग शहर के नयापारा में सिथत बाघेरा ग्राम के समीप निर्मित मृण्मय गढ़, धमधा शहर के मध्य सिथत महामाया मंदिर एवं चौघडि़या तालाब के समीप निर्मित मृण्मय गढ़, ग्राम डमरू जिला रायपुर, में विद्यमान मृत्तिका गढ़ तथा रसेड़ा ग्राम के समीप निर्मित मृत्तिका गढ़ की प्राप्ति महत्वपूर्ण हैं जहां से कुषाण काल सें लेकर कलचुरी काल तक के मृण्मय पात्र के टुकड़े प्राप्त हुये हैं ।