सर विलियम मेरिस ने ही स्वयं शाहजहांपुर तथा इलाहाबाद के हिन्दू-मुस्लिम दंगे के अभियुक्तों के मृत्यु-दण्ड रदद किये है, जिन को कि इलाहाबाद हाईकोर्ट से मृत्यु-दण्ड ही देना उचित समझा गया था और उन लोगों पर दिन दहाड़े हत्या करने के सीधे सबूत मौजूद थे ।
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सर विलियम मेरिस ने ही स्वयं शाहजहांपुर तथा इलाहाबाद के हिन्दू-मुस्लिम दंगे के अभियुक्तों के मृत्यु-दण्ड रदद किये है, जिन को कि इलाहाबाद हाईकोर्ट से मृत्यु-दण्ड ही देना उचित समझा गया था और उन लोगों पर दिन दहाड़े हत्या करने के सीधे सबूत मौजूद थे ।
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यह एक बहुत बड़ा अपराध है, पाप है जिसके लिए एक ही सज़ा है-निर्मम मृत्यु-दण्ड! तुम यदि अपने अपराध को स्वीकार कर लो तो फरसे से एक ही झटके से तुम्हारा सिर धड़ से अलग कर दिया जायेगा और तुम्हारी मौत कष्टरहित होगी।
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बाद में अंग्रेजी हुकूमत ने उनकी पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के कुल ४० क्रान्तिकारियों पर सम्राट के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने व मुसाफिरों की हत्या करने का मुकदमा चलाया जिसमें राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ तथा ठाकुर रोशन सिंह को मृत्यु-दण्ड (फाँसी की सजा) सुनायी गयी।
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इस्लामी कानून का पालन करने वाले अनेक इस्लामी देशों, सउदी अरब, येमन, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, ईजिप्त, इरान, मालदीव में स्वधर्म-त्याग को गैर-कानूनी घोषित किया गया है और इस्लाम का त्याग करने वालों या अन्य मुस्लिमों को इसके लिये उकसाने वालों के लिये कारावास या मृत्यु-दण्ड का प्रावधान है.
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बाद में अंग्रेजी हुकूमत ने उनकी पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसियेशन के कुल ४० क्रान्तिकारियों पर काकोरी काण्ड के नाम पर सम्राट के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने व मुसाफिरों की हत्या करने का मुकदमा चलाया जिसमें राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी,पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ तथा ठाकुर रोशन सिंह को मृत्यु-दण्ड (फाँसी की सजा) सुनाई गई।
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बाद में अंग्रेजी हुकूमत ने उनकी पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसियेशन के कुल ४० क्रान्तिकारियों पर काकोरी काण्ड के नाम पर सम्राट के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने व मुसाफिरों की हत्या करने का मुकदमा चलाया जिसमें राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी,पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ तथा ठाकुर रोशन सिंह को मृत्यु-दण्ड (फाँसी की सजा) सुनाई गई।
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काकोरी काण्ड के चारो मृत्यु-दण्ड प्राप्त कैदियों की सजायें कम करके आजीवन कारावास (उम्र-कैद) में बदलने हेतु सेण्ट्रल कौन्सिल के ७८ सदस्यों ने तत्कालीन वायसराय व गवर्नर जनरल एडवर्ड फ्रेडरिक लिण्डले वुड को शिमला जाकर हस्ताक्षर युक्त मेमोरियल दिया था जिस पर प्रमुख रूप से पं० मदन मोहन मालवीय, मोहम्मद अली जिन्ना[5], एन० सी० केलकर, लाला लाजपत राय व गोविन्द वल्लभ पन्त आदि ने हस्ताक्षर किये थे।
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उनकी हिट फिल्में रही ' तेजाब ', ' परिंदा ', ' त्रिदेव ' (1989), ' किसन-कन्हैया ', ' दिल ' (1990), ' साजन ' (1991), ' बेटा ' (1992), ' खलनायक ' (1993), ' हम आपके है कौन ' (1994), ' राजा ' (1995), ' दिल तो पागल है ' ' मृत्यु-दण्ड ' (1997), ' देवदास ' (2002), ' आजा नचले ' (2007) ।