3. मैथुन क्रिया से होने वाले नुकसान निम्रानुसार है-~ शरीर की जीवनी शक्ति घट जाती है, जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।
32.
ऐसा न होकर पांचवें दिन से लेकर अठारह दिन तक विषम दिनों में यानी पांच, सात, नौ, ग्यारह, तेरह, पंद्रह और सत्रहवें दिन मैथुन क्रिया संपन्न करने पर स्त्री संतान होगी।
33.
कहा भी है \ ' \' मैथुनं परमं तत्वं सृष्टिस्थित्यन्तकारणम्।\'\' यह भी लिखा है \'\' मैथुनात् जायते सिध्दिर्ब्रह्मज्ञानं सुदुर्लभम्।\'\' इसी परिप्रेक्ष्य में वात्स्यायन ने मैथुन क्रिया को मान्मथ क्रिया या आसन न कहकर \'योग\' कहा है।
34.
उदाहरण के लिए मैथुन क्रिया खुशी के सर्वोच्च साधन मानी जाती है, किन्तु इसका यथार्थ स्त्री का गर्भ गृहण कराना भी होता है जो अनेक परिस्थितियों में अवांछित तथा दुखमय हो सकता है.
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ऐसा न होकर पांचवें दिन से लेकर अठारह दिन तक विषम दिनों में यानी पांच, सात, नौ, ग्यारह, तेरह, पंद्रह और सत्रहवें दिन मैथुन क्रिया संपन्न करने पर स्त्री संतान होगी।
36.
पहले यौन सम्बँध से पुरुष सीखता है कि उसके पुरुष होने का क्या अर्थ है, यह समझ केवल मैथुन क्रिया के दौरान नहीं आती बल्कि उसके पहले और बाद के समय में बनती है.
37.
४ > नाडी के नीचे तिल यदि हो तो वह व्यक्ति कम आयु में ही मैथुन क्रिया में कमजोर हो जाता है एवं अप्पेंधिक्स और होर्निया जैसे रोगों से पीड़ित होने की संभावना अधिक रहती है।
38.
कामोत्तेजना के समय में रोगी व्यक्ति का वीर्य स्त्री के वीर्य से पहले ही लिंग से निकल जाता है और उसका लिंग सुस्त हो जाता है जिसके कारण मैथुन क्रिया का सुख उसे नहीं मिल पाता है।
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* नेट्रम मयूर: बांझपन, योनि में जलन, योनि की भीतरी जलन, मैथुन क्रिया के प्रति उदासीनता या उत्तेजना की कमी अथवा स्तनों में दूध की कमी हो तो इस साल्ट का सेवन करना चाहिए।
40.
पार्थ शब्द का उपयोग महाभारत में प्रचुर हुआ है जो ग्रीक भाषा के शब्द ' पर्ठेनोस ' का देवनागरी स्वरुप है जिसका अर्थ ' मैथुन-विहीन ' है अर्थात वह उत्पत्ति जिसमें मैथुन क्रिया का उपयोग न किया गया हो.