एक दिन जब उसने पाया कि उसकी ज़ेब में सिर्फ़ एक सौ नब्बे रुपए बचे रह गए थे तो एकाएक ही उसकी आंखों के सामने विकराल गरीबी झेलते परिवार का चित्र यथार्थ अनुभव की तरह चमक गया था।
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आदरणीय मनोज जी-बहुत ही सार्थक चर्चा प्रस्तुति-अनोखे विचार लगाकर और अन्य कई ज्ञानदायक लिंक लगाकर आप ने इस चर्चा में जान डाल दी-निम्न बहुत ही यथार्थ अनुभव आप का-कर्मंयेवाधिकारास्ते माँ फलेषु कदाचन सा-बधाई हो-
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लेकिन सिगमंड फ्रायड ने इसे विवादित बना दिया, जिसने पाया कि जहां पिटना और पिटाई किया जाना कामुक रूचि है, वहां यह बचपन में ही विकसित होता है, और सजा के यथार्थ अनुभव से इसका बहुत नगण्य संबंध है.
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[36] लेकिन सिगमंड फ्रायड ने इसे विवादित बना दिया, जिसने पाया कि जहां पिटना और पिटाई किया जाना कामुक रूचि है, वहां यह बचपन में ही विकसित होता है, और सजा के यथार्थ अनुभव से इसका बहुत नगण्य संबंध है.
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यथार्थ अनुभव की ही दूसरा नाम ' प्रमा' हैं। 'अयं घट:' (यह घड़ा है) इस प्रमा में हमारे अनुभव का विषय है घट (विशेष्य) जिसमें 'घटत्व' द्वारा सूचित विशेषण की सत्ता वर्तमान रहती है तथा यही घटत्व घट ज्ञान का विशिष्ट चिह्न है।
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सरकारी नौकरी की शुरुआत में मुझे यह नहीं समझ में आता था कि आखिर हिंदी को हिन्दी न कहकर राजभाषा क्यों कहते हैं, जबकि हकीकत में राजकीय कामकाज से तो इसका दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं (मेरे इस कथन से आप असहमत हो सकते हैं परंतु मैं जो यथार्थ अनुभव किया हूँ वही लिख रहा हूँ ।
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जीवन का उद्देश्य मन को नियंत्रित करना नहीं बल्कि उसका सुसंगत विकास करना है, मरने के बाद मोक्ष प्राप्त करना नहीं, बल्कि इस संसार में ही उसका सर्वोत्तम इस्तेमाल करना है, केवल ध्यान में ही नहीं, बल्िक दैनिक जीवन के यथार्थ अनुभव में भी सत्य, शिव और सुन्दर का साक्षात्कार करना है, सामाजिक प्रगति कुछेक की उन्नति पर नहीं, बल्कि बहुतों की समृद्धि पर निर्भर करती है, और आत्मिक जनतंत्र या सार्वभौमिक भ्रातृत्व केवल तभी प्राप्त किया जा सकता है, जब सामाजिक-राजनीतिक और आद्योगिक जीवन में अवसर की समानता हो।
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“जीवन का उद्देश्य मन को नियंत्रित करना नहीं बल्कि उसका सुसंगत विकास करना है, मरने के बाद मोक्ष प्राप्त करना नहीं, बल्कि इस संसार में ही उसका सर्वोत्तम इस्तेमाल करना है, केवल ध्यान में ही नहीं, बल्कि दैनिक जीवन के यथार्थ अनुभव में भी सत्य, शिव और सुंदर का साक्षात्कार करना है, सामाजिक प्रगति कुछेक की उन्नति पर नहीं, बल्कि बहुतों की समृद्धि पर निर्भर करती है, और आत्मिक जनतंत्र या सार्वभौमिक भ्रातृत्व केवल तभी प्राप्त किया जा सकता है, जब सामाजिक-राजनीतिक और औद्योगिक जीवन में अवसर की समानता हो.”
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जीवन का उद्देश्य जीवन का उद्देश्य मन को नियंत्रित करना नहीं बल्कि उसका सुसंगत विकास करना है, मरने के बाद मोक्ष प्राप्त करना नहीं, बल्कि इस संसार में ही उसका सर्वोत्तम इस्तेमाल करना है, केवल ध्यान में ही नहीं, बल्िक दैनिक जीवन के यथार्थ अनुभव में भी सत्य, शिव और सुन्दर का साक्षात्कार करना है, सामाजिक प्रगति कुछेक की उन्नति पर नहीं, बल्कि बहुतों की समृद्धि पर निर्भर करती है, और आत्मिक जनतंत्र या सार्वभौमिक भ्रातृत्व केवल तभी प्राप्त किया जा सकता है, जब सामाजिक-राजनीतिक और आद्योगिक जीवन में अवसर की समानता हो।
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पृष्ठ 124 जीवन का उद्देश्य “जीवन का उद्देश्य मन को नियंत्रित करना नहीं बल्कि उसका सुसंगत विकास करना है, मरने के बाद मोक्ष प्राप्त करना नहीं, बल्कि इस संसार में ही उसका सर्वोत्तम इस्तेमाल करना है, केवल ध्यान में ही नहीं, बल्कि दैनिक जीवन के यथार्थ अनुभव में भी सत्य, शिव और सुंदर का साक्षात्कार करना है, सामाजिक प्रगति कुछेक की उन्नति पर नहीं, बल्कि बहुतों की समृद्धि पर निर्भर करती है, और आत्मिक जनतंत्र या सार्वभौमिक भ्रातृत्व केवल तभी प्राप्त किया जा सकता है, जब सामाजिक-राजनीतिक और औद्योगिक जीवन में अवसर की समानता हो।” स्रोत अज्ञात