हमने ध्वंस का समाधान और सृजन का परिपोषण करने के लिए गायत्री जयंती २ ३ जून, १ ९ ८ ० से बीस वर्ष का युगसंधि महापुरश्चरण आरंभ किया है।
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इस युगसंधि वेला में तो हम सबको, उस स्तर की तप साधना में संलग्न रहना है, जिसे भगीरथ ने अपनाया और धरती पर स्वर्गस्थ गंगा का अवतरण संभव कर दिखाया था।
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इसलिए आप यहाँ से जाने के खाद स्वयं से, अपने आप से और हर जाग्रत आत्मा से यह कहना कि युगसंधि के ये वर्ष ऐसे हैं, जिनमें दुनिया का कायाकल्प हो जाएगा।
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सच तो यह है कि आज हिंदी पट्टी फिर से उस युगसंधि के समक्ष खड़ी है, जहां पारंपरिक समाज और उसकी भाषा को भीतर और बाहर दोनों तरफ से कई मोर्चो पर चुनौती मिल रही है।
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हिन्दुओं के भविष्य पुराण में लिखा है कि भविष्य में जो समय आयेगा वह दुनिया में प्रलय खड़ी हो जायेगी वह कौन सा समय है वह तीनों के हिसाब से यही समय है जिसको हम युगसंधि का समय कहते हैं।
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जले हुए दीपक ही बुझों को जला सकते हैं-इस मान्यता को ध्यान में रख सृजन-साधकों के निर्माण हेतु बारह वर्षीय युगसंधि महापुरश्चरण का प्रावधान हुआ एवं इक्कीसवीं सदी के युगशिल्पियों के प्रशिक्षण हेतु शान्तिकुञ्ज में संजीवनी साधना के शिक्षण की विस्तृत व्यवस्था है।
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आप भी जितना त्याग कर सकते हों बलिदान कर सकते हों युगसंधि की बेला में जितना भी कुछ अपने आपको जो आपसे बनता हो कि हम समय के लिये युग के लिये महाकाल के लिये कुछ त्याग कर पायेंगे तो आप उसको करने का संकल्प कर लीजिये उसको निभाते रहिये।