लेकिन जिन्होनें उनके साथ किसी भी क्षेत्र में कुछ समय तक काम किया है, या उनके लेखन और सामाजिक सक्रियता के साक्षी रहे हैं, वे अच्छी तरह जानते-समझते हैं कि शिवराम बेहद सहज और सामान्य दिखते हुए भी एक असाधारण इन्सान और युग-प्रवर्तक सृजनधर्मी थे।
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राम युग प्रवर्तक हैं, नयी नयी युग-प्रवर्तक मर्यादाओं, कर्म व आचरण नियमों के संस्थापक, वे स्वयं ज्ञान के भण्डार हैं, वे कर्म ज्ञानी हैं, उन्होंने ग्रन्थ भले ही न लिखे हों परन्तु वैदिक रीतियों-नियमों-आचरणों को स्वयं कर्मों में समाहित किया एवं उदाहरण रखा …..
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याद करो आज से ठीक 122 वर्ष पूर्व दिवाली की उस सन् ध् या को जब वर्तमान युग-प्रवर्तक महर्षि दयानन् द सरस् वती ने अपने जीवन की सन् ध् या समाप् त होने से पूर्व जगत् के असंख् य बुझे दीपकों को प्रज् वलित किया और हम से सदा-सदा के लिये विदा हो गए।
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दिवाली का पर्व हमें दो बातों की याद दिलाता है-एक, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन् द्र की अयोध् या में वापसी की तथा दूसरे, आधुनिक युग-प्रवर्तक और महान सुधारक महर्षि दयानन् द सरस् वती (“ आर्य समाज ” के संस् थापक) की, जिनकी पुण् य-तिथि दिवाली के ही दिन पड़ती है।
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कुल मिला कर मै भी मानता हूँ कि ' राजनीति ' मे वो अपने प्लाट को ले कर ' इम्पक्केबल ' नही रह पाये और न ट्रीटमेंट को ले कर कल्पनाशील (खासकर सो-काल्ड ' कर्ण-कुंती-संवाद ' तो समझ नही आया कि इमोशनल है या कॉमिक?) मगर जब तक हम उनसे युग-प्रवर्तक फ़िल्मों की अपेक्षा न करें, तब तक उनकी फ़िल्मों पे पैसे खर्च करना कभी घाटे का सौदा नही लगता.