इंडोचाइना में इसका फल संकोचक माना जाता है और इसके पत्ते रक्तातिसार और आमातिसार को दूर करने के लिए अच्छे माने जाते हैं।
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100 से 200 ग्राम अशोक की छाल के चूर्ण को दूध में पकाकर प्रतिदिन सुबह सेवन करने से रक्तातिसार की बीमारी समाप्त हो जाती है।
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शास्त्रोक्त विधि से हरड़ का सेवन करने से रक्तातिसार, अर्श, नेत्र रोग, अजीर्ण, प्रमेह, पाण्डु आदि रोगों में लाभ होता है।
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खूनी दस्त रक्तातिसार-काले तिल एक भाग में मिश्री 5 भाग मिलाकर पीसकर बकरी के दूध के साथ देने से रक्तातिसार में लाभ हो जाता है।
35.
बनलौंग के पंचांग को पीसकर मट्ठे के साथ देने से रक्तातिसार, रक्तामातिसार, कफ के साथ जाना आदि किसी भी अंग से होने वाले रक्तस्राव में लाभ होता है।
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नपुंसकता, कमजोरी, गठिया (जोड़ों का दर्द), मधुमेह, बाल रोग, कब्ज, अनिद्रा (नींद का कम आना), मोटापा, रक्तातिसार तथा जलन आदि रोगों के लिए यह काफी हितकारी होती है।
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आमातिसार (आंवयुक्तदस्त), रक्तातिसार (खूनी दस्त) आदि रोगों में उचित मात्रा में बेलगिरी का मुरब्बा अथवा मुरब्बे का शर्बत बच्चों को पिलाने से लाभ होता है।
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16 रक्तातिसार (दस्त में खून का आना):-अनार की छाल और कुरैया (इन्द्रजव) की छाल का काढ़ा शहद के साथ पीने से रक्तातिसार नष्ट हो जाता है।
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16 रक्तातिसार (दस्त में खून का आना):-अनार की छाल और कुरैया (इन्द्रजव) की छाल का काढ़ा शहद के साथ पीने से रक्तातिसार नष्ट हो जाता है।
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गरम पानी में डालकर केवल बीजों का या इसके साथ एक तिहाई भाग मुलेठी का चूर्ण मिलाकर, क्वाथ (काढ़ा) बनाया जाता है, जो रक्तातिसार और मूत्र संबंधी रोगों में उपयोगी कहा गया है।