रही बा स्टाफ की अगर वो कल्लुराम बताता है तो दुबरा आने में लल्लु राम बतता होगा लेकिन उसका शक्ल तो नही बदलता होगा लेकिन स्टाफ द्वारा बिना कुछ समक्षे फिर रक्त दाता से रक्त निकाल लिया जाता इससे अस्पताल प्रबंधन की भूमिका संदिज्ध रहती है।
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[54] [55] [56] [57] [58] [59] अगस्त 2010 में पीएनएएस में किये गए एक अध्ययन में बताया गया कि एफडीए/एनआईएच के शोधकर्ताओं को 87% मरीजों और 7% रक्त दाता नियंत्रणों में पोलीट्रोपिक एमएलवी और एक्सएमआरवी के समान म्यूरीन ल्यूकेमिया वाइरस (एमएलवी)-जैसा रेट्रोवाइरस गैग जीन अनुक्रम मिला था.
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ये सहायक चिकित्सक एवं शल्य-चिकित्सक रोग संचारण एवं और प्रतिरक्षा दमन के जोखिम से बचते हैं, क्रोनिक रक्त दाता की कमी की चर्चा करते हैं, और जेहोवा के गवाहों एवं अन्य लोगों की चिंताओं पर ध्यान देते हैं, जिनकी आधानित (चढ़ाये गए रक्त) को प्राप्त करने में धार्मिक आपत्तियां हैं.
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ये सहायक चिकित्सक एवं शल्य-चिकित्सक रोग संचारण एवं और प्रतिरक्षा दमन के जोखिम से बचते हैं, क्रोनिक रक्त दाता की कमी की चर्चा करते हैं, और जेहोवा के गवाहों एवं अन्य लोगों की चिंताओं पर ध्यान देते हैं, जिनकी आधानित (चढ़ाये गए रक्त) को प्राप्त करने में धार्मिक आपत्तियां हैं.
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आमतौर पर इस पूरी प्रक्रिया के लिए दानदाताओं को सहमति देने की आवश्यकता होती है और इस आवश्यकता का मतलब यह है कि नाबालिग अपने माता पिता या अभिभावक की अनुमति के बिना दान नहीं कर सकते. [15] कुछ देशों में, पहचान को गुमनाम बनाये रखने के लिए, जवाब दानकर्ता के रक्त से जुड़ा होता है, न कि रक्त दाता के नाम से;
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[53] हालांकि ब्रिटेन, अमेरिका, जर्मनी, नीदरलैंड और चीन में किये गए छः अनुवर्ती अध्ययनों में इस संबंध का पता नहीं चला था.[54][55][56][57][58][59] अगस्त 2010 में पीएनएएस में किये गए एक अध्ययन में बताया गया कि एफडीए/एनआईएच के शोधकर्ताओं को 87% मरीजों और 7% रक्त दाता नियंत्रणों में पोलीट्रोपिक एमएलवी और एक्सएमआरवी के समान म्यूरीन ल्यूकेमिया वाइरस (एमएलवी)-जैसा रेट्रोवाइरस गैग जीन अनुक्रम मिला था.
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जिला रक्तकोष अधिकारी डा. ए. आर. खान, के अनुसार रक्तदाता को शारीरिक रूप से पूर्ण स्वस्थ होना चाहिए, उसका वजन 45 किलो ग्राम से कम नहीं होना चाहिए, रक्तदाता की उम्र 18 से 55 वर्ष के मध्य होना चाहिए एवं रक्त दाता किसी भी प्रकार की गंभीर बीमारी जैसे मधुमेह / उच्च एवं निम्न रक्तचाप / कैंसर / ह्रदय संबंधी बीमारियों आदि से ग्रसित नहीं होना चाहिए ।
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जिन वॉयरसों अथवा जिवाणुओं का हमें पता है उन की तो हम नें रक्त दाता से रक्त लेकर जांच कर डाली लेकिन जिन के बारे में अभी चिकित्सा विज्ञान को कुछ भी पता ही नहीं है, उन का क्या? कल ही मैं पढ़ रहा था कि रक्त के चढ़ाने से एक अन्य नईं सी बीमारी (नाम ध्यान में नहीं आ रहा) के फैलने के रिस्क का भी पता चला है ।
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दरअसल होता यूं है कि जब भी कोई रक्त दान शिविर लगता है तो रक्त-दाताओं का पता एवं फोन नंबर इत्यादि नोट किया जाता है-रक्त को इक्ट्ठा करने के बाद उस की यह जांच की जाती है कि उस में एचआईव्ही, हैपेटाइटिस बी, हैपेटाइटिस सी एवं मलेरिया जैसे रोगों के कीटाणु तो नहीं है-अगर किसी रक्त दाता के रक्त में इस तरह का कोई संक्रमण पाया जाता है तो उस रक्त को नष्ट कर दिया जाता है और उस रक्त दाता को सूचित कर दिया जाता है ।
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दरअसल होता यूं है कि जब भी कोई रक्त दान शिविर लगता है तो रक्त-दाताओं का पता एवं फोन नंबर इत्यादि नोट किया जाता है-रक्त को इक्ट्ठा करने के बाद उस की यह जांच की जाती है कि उस में एचआईव्ही, हैपेटाइटिस बी, हैपेटाइटिस सी एवं मलेरिया जैसे रोगों के कीटाणु तो नहीं है-अगर किसी रक्त दाता के रक्त में इस तरह का कोई संक्रमण पाया जाता है तो उस रक्त को नष्ट कर दिया जाता है और उस रक्त दाता को सूचित कर दिया जाता है ।