दीन, असहाय, शरणागत, सज्जन और साधू चाहे जिस देश, जाति, धर्म के क्यों न हों, क्षात्र-परंपरा द्वारा वे सदैव रक्षणीय और अभिमानी, दुष्ट और आततायी चाहे जिस जाति, देश, धर्म के अनुयायी क्यों न हों, सदैव दण्डनीय है।
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रक्षणीय कुछ भी नहीं था यहाँ संस्कृति थी यह एक बूढ़े और अन्धे की जिसकी सन्तानों ने महायुद्ध घोषित किए, जिसको अन्धेपन में मर्यादा गलित अंग वेश्या-सी प्रजाजनों को भी रोगी बनाती फिरी उस अन्धी संस्कृति, उस रोगी मर्यादा की रक्षा हम करते रहे सत्रह दिन।
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बुराई आदि असाधु प्रवर्तियाँ चाहे स्वराष्ट्र में हों अथवा पर-राष्ट्र में, चाहे स्वजाति में हों अथवा पर-जाति में, उनके विनाश के लिए क्षात्र-वृति को सदैव तत्पर रहना चाहिए और इसी भांति भलाई और साधू-वृत्तियाँ चाहे जिस राष्ट्र अथवा जाति में हों, क्षात्र-वृत्ति द्वारा वे रक्षणीय है।
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कुल मिला कर अपने देश में जब तक आदर्शवादी दलों के ऐसे आदर्श गठजोड़ नहीं बनते, जो अपने क्षुद्र दलीय चुनावी हितों से ऊपर उठ कर राष्ट्रीय संदर्भों में जरूरी फैसले ईमानदारी से ले सकें, गरीबों की बुनियादी जरूरतें पूरी करने को नरेगा जैसी पहलें जरूरी और रक्षणीय बनती हैं।
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थके हुए हैं हम, इसलिए नही कि कहीं युद्धों में हमने भी बाहुबल दिखाया है प्रहरी थे हम केवल सत्रह दिनों के लोमहर्षक संग्राम में भाले हमारे ये, ढालें हमारी ये, निरर्थक पड़ी रहीं अंगों पर बोझ बनी रक्षक थे हम केवल लेकिन रक्षणीय कुछ भी नहीं था यहाँ
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‘ सिरहाने मीर के’ कविता में अरुण देव कविता के उस तट तक गए हैं जहां अतीत अपना रक्षणीय औदात्य वर्तमान को सौंपता है और इतिहास की पेटी से कला का जादुई शीशा खींच लाता है जिसमें हम अपने संपूर्ण अस्तित्व को निहार सकें. </p>< p>कवि हर बार हमारे भावकोष को समृद्ध कर जाता है.
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एक रक्षणीय और पोषनीय कृषि जिससे उपज की मात्रा और स्तर दोनों बरकरार रहे. हरित क्रान्ति के जनक डा. एम्. एस. स्वामीनाथन का कहना है कि किसी खाद्य फसल को बोने के वक्त जमीन की हालत और जल की ज़रुरत, खाद का उचित उपयोग और फसल चक्र को ध्यान में रखना चाहि ए. ”
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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार और उससे निकला मीडिया की स्वतंत्रता का आदर्श कार्यपालिका या विधायिका के हमलों के खिलाफ जितना रक्षणीय है, उतना ही रक्षणीय न्यायिक दखल से भी क्यों नहीं होगा? इस भोले विश्वास को चाहे कितना ही बढ़ावा क्यों न दिया जाए, इसका कोई आधार नहीं है कि राज्य के अन्य बाजुओं से अलग, न्यायपालिका जनतंत्र की स्वाभाविक पक्षधर है।
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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार और उससे निकला मीडिया की स्वतंत्रता का आदर्श कार्यपालिका या विधायिका के हमलों के खिलाफ जितना रक्षणीय है, उतना ही रक्षणीय न्यायिक दखल से भी क्यों नहीं होगा? इस भोले विश्वास को चाहे कितना ही बढ़ावा क्यों न दिया जाए, इसका कोई आधार नहीं है कि राज्य के अन्य बाजुओं से अलग, न्यायपालिका जनतंत्र की स्वाभाविक पक्षधर है।
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ऐसी प्रत्येक हित को जिसे कांग्रेस रक्षणीय मानती है, इन करोड़ों मूक मानवों के हित साधन में सहायक होना है और इसलिए आपको यदा-कदा विभिन् न हितों के बीच ऊपरी तौर पर कुछ टकराव देखने को मिलता है लेकिन अगर इन हितों के बीच कोई वास्तविक टकराव हो तो मुझे कांग्रेस की ओर से यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि उस हालत में वह इन करोड़ों मूक मानवों के हित-साधन के लिए बाकी सभी हितों का बलिदान कर देगी ।