का बहुत सुन्दर रूप में वर्णन करता है तो उसके प्रति उसके रतिभाव का पता
32.
इस काल की कविता में नारी केवल पुरुष के रतिभाव का आलम्बन बनकर रह गई ।
33.
यहाँ पर केवल रतिभाव के अन्तर्गत कुछ मानसिक दशाओं की व्यंजना के उदाहरण ही काफी समझाता हूँ।
34.
सखी का यह विनोद हर्ष का ही एक स्वरूप है जो उस सखी का राधाकृष्ण के प्रति रतिभाव व्यंजित करता है।
35.
इस कमी से रतिभाव के स्वरूप के उत्कर्ष में तो कोई कमी नहीं हुई है पर सम्भोगपक्ष उतना अनुरंजनकारी नहीं हुआ है।
36.
94-95 ” style = color: blue > * / balloon > इस विभाजन का आधार रतिभाव की मुख्यता या गौणता है।
37.
रतिभाव के संचारी के रूप में ' आशा ' या ' विश्वास ' की बड़ी सुन्दर व्यंजना जायसी ने पद्मावती के मुँह से कराई है।
38.
उक्त उदाहरण में यह नहीं कहा जा सकता कि जिस प्रकार ' असूया ' रतिभाव का संचारी होकर आया है उसी प्रकार ' अमर्ष ' भी।
39.
मनुष्य के रतिभाव का यहाँ जिस रूप में उदात्तीकरण किया गया है, वह भारतीय मनीषा के धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष के पुरूषार्थ चतुष्टय को ही परिभाषित-व्याख्यायित करता है।
40.
सूर के गीति काव्य में रतिभाव के तीनों प्रबल और प्रधान रूप-भगवद्विशयक रति, वात्सल्य और दाम्पत्य रति-प्रचुर मात्रा में प्राप्त होते हैं.