कहानी कही जाती है कि किसी कम्युनिस्ट जुड़ाव वाले रहस्यमय व्यक्ति ने इस प्रस्ताव को या इसके भारी हिस्से को लिखा और कराची में इसे मेरे ऊपर थोप दिया, ताकि उसके ज़रिये मैं मिस्टर गाँधी को चुनौती दे पाया कि या तो इसे स्वीकार करें या दिल्ली समझौते पर मेरे विरोध का मुकाबला करें और मिस्टर गाँधी ने इसे निगल लिया और थकी हुई कांग्रेस कमेटी के सामने आख़िरी दिन ला पटका, यह मेरे लिये मिस्टर गाँधी का एक घूस है.... ”