प्रेमचंद के लेख का शीर्षक, ' राज्यवाद और साम्राज्यवाद ' ही यह दर्शाता है कि वे इन दो तरह की राज्यव्यवस्थाओं का अंतर बता रहे हैं, राज्यवाद को हम लोग ' सामंतवाद कहते हैं, और ' साम्राज्यवाद तो वही है जिसे दुनिया के सारे शोषित अवाम और विकासशील देश अब अच्छी तरह जान चुके हैं जो आज की तारीख में सीरिया पर हमले के लिए तैयार बैठा है जिससे तीसरे विश्वयुद्ध का खतरा हमारी आंखों के सामने है।