आयोग ने अपनी रिपोर्ट १ ९ ५५ में दी और १ ९ ५ ६ में ‘ राज्य पुनर्गठन अधिनियम ' लागू हुआ, जिसके अनुसार देश को १ ६ राज्यों और ३ केंद्र शासित क्षेत्रों में पुनर्गठित कर दिया गया।
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इसके बाद राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत हैदराबाद प्रांत को तेलगू भाषी क्षेत्र आंध्र में मिला दिया गया और 1 नवंबर 1956 को आंध्र प्रदेश राज्य बनाया गया जिसकी राजधानी हैदराबाद प्रांत की तत्कालीन राजधानी हैदराबाद शहर को बनाया गया.
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कृषि विभाग में कार्यरत धर्मेद्र कुमार व अन्य की ओर से हाईकोर्ट में दायर याचिका में कहा गया था कि जिला कैडर के कर्मचारियों को यूपी के लिए कार्य मुक्त किया जाना राज्य पुनर्गठन अधिनियम की धारा 73 का उल्लंघन है।
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राज्य पहाड़ी और मुख्यमंत्री से लेकर राजधानी तक सब कुछ मैदान का, ऐसा सलूक शायद ही किसी और समाज के साथ हुआ होगा! इन सारे कदमों और राज्य पुनर्गठन अधिनियम की व्यवस्थाओं में क्षेत्रवाद का डंक छिपा हुआ था ।
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राज्य पहाड़ी और मुख्यमंत्री से लेकर राजधानी तक सब कुछ मैदान का, ऐसा सलूक शायद ही किसी और समाज के साथ हुआ होगा! इन सारे कदमों और राज्य पुनर्गठन अधिनियम की व्यवस्थाओं में क्षेत्रवाद का डंक छिपा हुआ था ।
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राज्य पुनर्गठन अधिनियम, १९५६ के अनुसार राज्यीय सीमाओं को भाषाई आधार पर पुनर्व्यवस्थित किया गया, इसलिए कई राज्यों के नाम उनकी भाषाओं के अनुसार हैं, और आमतौर पर तमिल नाडु (तमिल) और कर्णाटक (कन्नड़) को छोड़कर, इन नामों की उत्पत्ति संस्कृत से होती है।
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उच्च न्यायालय की एकल पीठ के निर्णय में यह तथ्य विरोधाभासी है कि जब प्रदेश में मूल निवास का प्रावधान उत्तराखंड राज्य पुनर्गठन अधिनियम में है तो फिर राज्य सरकार मूल निवास की कट ऑफ डेट राज्य गठन को क्यों मान रही है?
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राज्य पुनर्गठन अधिनियम, १९५६ के अनुसार राज्यीय सीमाओं को भाषाई आधार पर पुनर्व्यवस्थित किया गया, इसलिए कई राज्यों के नाम उनकी भाषाओं के अनुसार हैं, और आमतौर पर तमिल नाडु (तमिल) और कर्णाटक (कन्नड़) को छोड़कर, इन नामों की उत्पत्ति संस्कृत से होती है।
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आजादी के बाद, हालांकि, भारत में अस्थिरता कायम हो गई.कई प्रांत औपनिवेशिक के उद्देश्य से ब्रिटीशों द्वारा बनाए गए, पर इन पर भारतीय नागरिकों की या राजसी राज्यों की कोई इच्छा दिखाई नहीं देती.1956 में जातीय तनाव ने संसद का दरवाजा खटखटाया और राज्य पुनर्गठन अधिनियम के आधार पर देश को जातीय और भाषाई माध्यम से पुनर्निर्माण करने के लिए कहा.
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उत्तराखंड राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2 ००० की धारा 24 व 25 तथा इसी अधिनियम की पांचवीं और छठी अनुसूची तथा उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ के निर्णय में जो व्यवस्था की गई है, उसके आलोक में उत्तराखंड में उसी व्यक्ति को जाति प्रमाण पत्र मिल सकता है जो 1 ० अगस्त / 6 सितंबर 195 ० को वर्तमान उत्तराखंड राज्य की सीमा में स्थायी निवासी के रूप में निवास कर रहा था।