डार्विन खाड़ी में फ्रिगेट पक्षी और अबाबील-पुच्छ गल जो दुनिया की एकमात्र रात्रिचर गल प्रजाति है, पाये जाते हैं।
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तिलचट्टा कीट वर्ग का एक सर्वाहारी, रात्रिचर प्राणी है जो अंधेरे में, गर्म स्थानों में, जैसे रसोई घर, गोदाम, अनाज
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अधिकांश उल्लू रात्रिचर ही होते हैं, किंतु अनेक जातियां दिनचर होती हैं, और कुछ जातियां दिनरात्रिचर भी होती हैं।
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रात्रिचर हैं और दिन में बड़े वृक्षों के खोखले भाग (खोह) में अथवा डालों के बीच विश्राम करते हैं।
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लोटा लेकर किसी खेत की मेड़ में या किसी पेड़ की ओट में बैठने के बाद रात्रिचर जीव की आवाजें सुनाई देतीं।
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मार्च में प्रौढ़ निकलते हैं. ये भी रात्रिचर होते हैं. मादाशलभ लगभग ४००-१००० अंडे समूहों में पत्तियों की निचली सतहों पर देते हैं.
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@ शिवम मिश्रा जी बेनामी टिप्पणी से रात्रिचर प्राणी भी टिप्पणी कर सकते है बुरके वालो के लिये भी तो जगह होनी चाहिये लोकतंत्र मे.
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यह रात्रिचर होता है इन प्रमुख विषहीन साँपों के अलावा बांबी साँप, कृमि साँप, कवच पूँछ, कुकरी साँप आदि भी पाए जाते हैं।
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चिड़ियाघर क्षेत्र में 3400 वर्गमीटर में सर्प उद्यान (स्नेक पार्क), 2100 वर्गमीटर में रात्रिचर प्राणी स्थल और 1500 वर्गमीटर में पक्षियों के लिए प्रदर्शन केन्द्र बनाया जाएगा।
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अक्सर रात के अन्दर पैदा होने वाली बेलों के फ़ूल जहरीले होते है उन्हे कोई रात्रिचर भी नही खा सकता है, मनुष्य की बात ही क्या है।