क्या अब तक सब की देह से ग़ुस्सा ग़ायब हो गया था और सब को सिस्टम की नपुंसकता ने घेर लिया था? ‘ आजकल तुम कितने ऐन. जी. ओ चलाते हो? ' … ‘ यही कोई सात-आठ. ' रिश्वतख़ोरी को पहले लोग नफ़रत की नज़र से देखते थे, पर अब वही रिश्वतख़ोरी उन की योग्यता बन चली थी … इस अंतिम वक्तव्य से सहमत होना मुझ जैसोँ के लिए संभव नहीँ है.
32.
क्या अब तक सब की देह से ग़ुस्सा ग़ायब हो गया था और सब को सिस्टम की नपुंसकता ने घेर लिया था? ‘ आजकल तुम कितने ऐन. जी. ओ चलाते हो? ' … ‘ यही कोई सात-आठ. ' रिश्वतख़ोरी को पहले लोग नफ़रत की नज़र से देखते थे, पर अब वही रिश्वतख़ोरी उन की योग्यता बन चली थी … इस अंतिम वक्तव्य से सहमत होना मुझ जैसोँ के लिए संभव नहीँ है.
33.
हज़ारों लाख करोड़ डकारने के बाद भी शर्मिंदगी के बजाए सीना तान के रहना, भ्रष्टाचार, रिश्वतख़ोरी के कारण हर योजना को फ़ेल कर देना, ड्यूटी से लापर्वाह लेकिन अधिकारों के प्रति जागरुक, बेतहाशा आबादी, दुर्बलों पर अत्याचार और उनका हक़ मारना, बेटियों को पैदा होने से पहले ही मार देना, विदेश नीति की सही दिशा न तय कर पाना, बेरोज़गारों की फ़ौज में रोज़ इज़ाफ़ा करना, सिर्फ़ एक छोटे से समूह का अपना काम निष्ठा से करना ही अगर महानता कै पैमाना है तो हम महान हैं.