स्वामी रामतीर्थ ने भी कहा था-“बहता हुआ जल सदा स्वच्छ और निर्मल रहता है जबकि रुका हुआ पानी सड़ने लगता है और बदबू देता है, इसलिए जीवन में सदैव गतिशील बनो”।
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स्वामी रामतीर्थ ने भी कहा था-“बहता हुआ जल सदा स्वच्छ और निर्मल रहता है जबकि रुका हुआ पानी सड़ने लगता है और बदबू देता है, इसलिए जीवन में सदैव गतिशील बनो”।
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हाँ वैसे भी ज़िन्दगी आगे की ओर है पीछे रुका हुआ पानी है व्यतीत है सोचते ही नहीं रहना है कर्म करते रहना है अहर्निस. बढ़िया रचना है जोश की उमंग की.
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स्वामी रामतीर्थ ने भी कहा था-“ बहता हुआ जल सदा स्वच्छ और निर्मल रहता है जबकि रुका हुआ पानी सड़ने लगता है और बदबू देता है, इसलिए जीवन में सदैव गतिशील बनो ” ।
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मच्छरदानी लगाकर सोना, मच्छरों के पलने की जगहों, जैसे रुका हुआ पानी, अँधेरे कोनों की सफाई, और मच्छरों को मारने के लिए दवा का छिड़काव आदि कई तरीके हैं जिनसे बीमारी को रोका जा सकता है।
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‘ नो! ' आनंद थोड़ा सख़्ती से बोला, ‘ अगर आप को ज़ोर की प्यास लगी है और पास कहीं पानी नहीं है, नाली का बहता या रुका हुआ पानी ही उपलब्ध है तो क्या उसे पी लेंगे?
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हम ही न | जब हम ही इन्हे बनाते हैं, तब समय के साथ इन्हे बदलने का प्रयास हमें अवश्य करना चाहिए वरना रुका हुआ पानी और अचल समाज रुढिवादिता एवं ठहराव का सूचक होगा | क्या सोच विधाता ने जब सृष्टि बनायी थी, तेरी सखी बनने को मैं धरती पे आई थी...
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भन भन करते आते मच्छर, मंडराते हैं पास में यहाँ-वहाँ और गली-गली, क्या खोली मकान में सुबह शाम हो दिन या रात, जुट जाते ये काम में ख़ून चूसना इनको भाता, शोर मचाते कान में रुका हुआ पानी है ख़तरा, साफ़-सफाई रक्खो भइया ये हैं रोगों के बाराती, आफ़त डाले जान में।
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किसने बनाया है समाज के नियमों को? उन सीमाओं को जिनको हम बिना प्रश्न किए अपनाते हैं? कौन है इन सब मर्यादाओं, इन ढ़ान्चो का रचयिता? हम ही न | जब हम ही इन्हे बनाते हैं, तब समय के साथ इन्हे बदलने का प्रयास हमें अवश्य करना चाहिए वरना रुका हुआ पानी और अचल समाज रुढिवादिता एवं ठहराव का सूचक होगा |