प्रस्तुति: मंगला कोठियाल उत्तराखंड के ग्रामीण अंचल में जीवन की आखिरी सांस तक जनसेवा, पत्रकारिता, रुढ़िवादिता एवं अंधविश्वासों के विरुद्ध जंग लड़ने वाले सामाजिक कार्यकर्ता पंडित देवराम नौटियाल के तेजस्वी कर्मठ व्यक्ति को हमेशा याद किया जाता रहेगा।
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1933 में गांधी जी जब हरिजन उद्धार यात्रा पर निकले उसके पहले से ही पं. सुन्दरलाल शर्मा छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में व्याप्त रुढ़िवादिता, अंधविश्वास, अस्पृश्यता तथा कुरीतियों को दूर करने के लिए प्रयास में जुटे रहे ।
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जहाँ एक ओर हमारी संस्कृति दुनिया भर के लोगों के बीच हमें एक ऊँचा और महत्वपूर्ण ओहदा दिलवाने में सहायक हुई है वहीं भारतीय समाज में व्याप्त अंधविश्वास और रुढ़िवादिता हमेशा से इसकी प्रगति और विकास में बाधा पहुँचाते रहे हैं।
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प्रस्तुति: मंगला कोठियाल उत्तराखंड के ग्रामीण अंचल में जीवन की आखिरी सांस तक जनसेवा, पत्रकारिता, रुढ़िवादिता एवं अंधविश्वासों के विरुद्ध जंग लड़ने वाले सामाजिक कार्यकर्ता पंडित देवराम नौटियाल के तेजस्वी कर्मठ व्यक्ति को हमेशा याद किया जाता रहेगा।
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जहां एक ओर हमारी संस्कृति दुनियांभर के लोगों के बीच हमें एक ऊंचा और महत्वपूर्ण ओहदा दिलवाने में सहायक हुई है वहीं भारतीय समाज में व्याप्त अंधविश्वास और रुढ़िवादिता हमेशा से इसकी प्रगति और विकास में बाधा पहुंचाते रहे हैं.
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जब लोगों की भौतिक आवश्यकताएं पूरी नहीं हो पायीं, उनमें वैज्ञानिक अभिवृत्ति का विकास नहीं हो पाता है तो इस रिक्त स्थान (भौतिक और मनोवैज्ञानिक दोनों), को रुढ़िवादिता और अलौकिकता की बढ़ती प्रवृत्ति ने ले लेती है।
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हमने अमृतसर में ही अपने राजनीतिक जीवन में एक स्पष्ट घटना के रुप में दक्षिणपंथी प्रतिक्रिया के उभार की ओर सबका ध्यान आकर्षित किया था और वह ऐसी घटना है, जिसका सांप्रदायिकता और मात्र रुढ़िवादिता से ही घनिष्ट संबंध नहीं है।
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यह दीर्घा भाषा और व्यक्तित्व भावना ओर रूप, प्रेरणा और तनाव, स्मृति और क्रिया, बोध और सामूहिक आचरण एवं सामजिक रुढ़िवादिता ओर अपने चारो आरे के भैतिक स्थान का उपयोग जैसे विषयों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करती है तो अपने अन्दर छुपे सही मानव स्वभाव की खोज के लिए तैयार हो जाइए।
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अगर हम अंधविश्वास और रुढ़िवादिता को छोड़कर उक्त वैज्ञानिक सत्य को स्वीकार कर लें तो ऐसा करने से हमारी कौन सी नाक कट जाएगी? एक वैज्ञानिक सत्य को अपनाने से हम कौन सा असभ्य और अनैतिक साबित हो जाएंगे? एक वैज्ञानिक सत्य को मानने से हम कौन सा कमजोर और बुद्धिहीन समझे जाएंगे?
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रूप कंवर सती हुई, और जाते-जाते इस देश की अंधविश्र्वासी जनता को और गहरे अंधविश्र्वास और गहरी रुढ़िवादिता के दौर में धकेल गयी जितने लोगों के मन में औरत की इस मजबुरी के विरुद्ध ज्वाला धधक उठी, उससे कहीं अधिक लोगों ने, अधिक तीव्रता से यह मान लिया कि नारी जीवन का आदर्श यही है,