तो इस महान महबूब चित्रकार को नमन करते हुए उस श्रृंखला को जारी रखते हुए पियरे ला म्यूर की लिखी हैनरी द तुलूस लौत्रेक की जीवनी ' मूलां रूज़ ' के के पहले अध्याय के अनुवाद का पहला हिस्सा प्रस्तुत है.
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फिदेल ऐलेजैंड्रो कास्त्रो रूज़ (जन्म 13 अगस्त 1926) क्यूबा के एक राजनीतिज्ञ और क्यूबा की क्रांति के प्राथमिक नेताओं में से एक है, जो फ़रवरी 1959 से दिसम्बर 1976 तक क्यूबा के प्रधानमंत्री और फिर क्यूबा की राज्य परिषद के अध्यक्ष (राष्ट्रपति)
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उसके बाद एक बार विएना के लियोपॉल्ड म्यूज़ियम में हैनरी दे तुलूस लौत्रेक की प्रदर्शनी देखने के बाद मैं लौत्रेक नामी इस महान वैश्यागामी, शराबी और ' मूलां रूज़ ' को अमर बना देने वाले चित्रकार का मुरीद हो गया.
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चिकन ग्रील्ड) मदफुन (शाब्दिक अर्थ दफन), मग्लूबह, किब्दाह, मंज़लाह (आमतौर पर ईद-उल-फितर में खाया जाता है), मासूब, मगलिया (फलाफेल का हिजीज़ी संस्करण), सलेग (दूध चावल से बनी हिजाज़ी पकवान), हुमुस, बिरयानी रूज़ काब्ली, रूज़ बुखारी, सैयाडिया जैसे व्यंजनों को शहर भर के पारम्परिक रेस्तरां में पाया जा सकता है.
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चिकन ग्रील्ड) मदफुन (शाब्दिक अर्थ दफन), मग्लूबह, किब्दाह, मंज़लाह (आमतौर पर ईद-उल-फितर में खाया जाता है), मासूब, मगलिया (फलाफेल का हिजीज़ी संस्करण), सलेग (दूध चावल से बनी हिजाज़ी पकवान), हुमुस, बिरयानी रूज़ काब्ली, रूज़ बुखारी, सैयाडिया जैसे व्यंजनों को शहर भर के पारम्परिक रेस्तरां में पाया जा सकता है.
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यह रचना गजल नही है क्यों की गजल की एक निश्चित बहर होती है बहर उर्दू का छंद है और गजल का एक अपना व्याकरण जिसे रूज़ कहते हैं वह भी जरूरी है तथा उस में वर्ण की गणना का भी नियम देवनागरी वर्ण की गणना से भिन्न है ।
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पर चिकन ग्रील्ड) मदफुन (शाब्दिक अर्थ दफन), मग्लूबह, किब्दाह, मंज़लाह (आमतौर पर ईद-उल-फितर में खाया जाता है), मासूब, मगलिया (फलाफेल का हिजीज़ी संस्करण), सलेग (दूध चावल से बनी हिजाज़ी पकवान), हुमुस, बिरयानी रूज़ काब्ली, रूज़ बुखारी, सैयाडिया जैसे व्यंजनों को शहर भर के पारम्परिक रेस्तरां में पाया जा सकता है.
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पर चिकन ग्रील्ड) मदफुन (शाब्दिक अर्थ दफन), मग्लूबह, किब्दाह, मंज़लाह (आमतौर पर ईद-उल-फितर में खाया जाता है), मासूब, मगलिया (फलाफेल का हिजीज़ी संस्करण), सलेग (दूध चावल से बनी हिजाज़ी पकवान), हुमुस, बिरयानी रूज़ काब्ली, रूज़ बुखारी, सैयाडिया जैसे व्यंजनों को शहर भर के पारम्परिक रेस्तरां में पाया जा सकता है.
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अभी रात ही को उनकी एक और फ़िल्म पर नज़र पड़ी जिसमें कहानी जैसी कोई कहानी भी नहीं, बस इतना नचवैयों का एक धुनी मैनेजर है पैसों की तंगी और बीस झंझटों के बीच किसी तरह मूलान रूज़ पर अपना मेला जमाना चाहता है, बस, बुढ़ा रहे जां गाबीं के सहज अभिनय में इतनी सी ही है कहानी, मगर फिर कैसी तो तरल-गरल मानवीयता में नहायी हुई, ओह.
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हेजाज़ी भी काफी लोकप्रिय है साथ ही मब्शूर, मिताब्बक, फोल, अरेका, हरेसा, कबाब मेरू, शोराबाह हरेरा (हरेरा सूप), मिगाल्गल, माधबी (पत्थर पर चिकन ग्रील्ड) मदफुन (शाब्दिक अर्थ दफन), मग्लूबह, किब्दाह, मंज़लाह (आमतौर पर ईद-उल-फितर में खाया जाता है), मासूब, मगलिया (फलाफेल का हिजीज़ी संस्करण), सलेग (दूध चावल से बनी हिजाज़ी पकवान), हुमुस, बिरयानी रूज़ काब्ली, रूज़ बुखारी, सैयाडिया जैसे व्यंजनों को शहर भर के पारम्परिक रेस्तरां में पाया जा सकता है.