पर इसमे ' वफ़ा ' का क्या काम, के अगर मेरी क़िसमत में सर ही फोडना है, तो उसी महबूब के चौखट के पत्थर पे ही क्यूँ?) क़फ़स में मुझ से रूदाद-ए चमन कहते न डर हमदम गिरी है जिस पह कल बिजली वो मेरा आशियां क्यूं हो (बेहतरीन शेर!
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ग़म दिये मुस्तक़िल, कितना नाज़ुक है दिल, ये न जाना हाय हाय ये ज़ालिम ज़माना दे उठे दाग लौ, उनसे ऐ माह-ए-नौ, कह सुनना हाय हाय ये ज़ालिम ज़माना (दिल के हाथों से दामन छुड़ाकर ग़म की नज़रों से नज़रें बचाकर)-२ उठके वो चल दिये, कहते ही रह गये, हम फ़साना हाय हाय ये ज़ालिम ज़माना (कोई मेरी ये रूदाद देखे, ये मुहब्बत की बेदाद देखे)-२ <
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अब कहाँ वो ज़हर के प्याले, कहाँ मीरा कहो प्रेम की बाज़ी में क्यों शह-मात पहले-सी नहीं बहुत खूब.......!! दिल दर्द से आबाद है कह लूँ ग़ज़ल अभी इस दिल का क्या पता कि फिर आबाद हो न हो क्या बात है......!! उलफ़त के मेरी आज तो चर्चे हैं हर तरफ़ कल वक्त क़े होंठों पे ये रूदाद हो न हो आपका बहुत बहुत शुक्रिया नरेश जी को हम तक पहुँचाने के लिए.......!!
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आवाज़ सुनी मेरी न रूदाद किसी नेतरजीह न दी मुझको तेरे बाद किसी नेपरवाज़ से उसकी ये गुमाँ हो तो रहा थापिंजरे से किया है उसे आज़ाद किसी नेआता ही नहीं सामने पर्दे से निकलकरवैसे उसे देखा भी है, इक-आद किसी नेआँखों में उभर आया उसी वक़्त कोई अक़्सजिस वक़्त किया मुझको कहीं याद किसी नेदामन मेरा ख़ुशियों से सराबोर है यानीकी होगी मेरे वास्ते फ़रियाद किसी नेइस शहर का अफ़साना कोई ख़ास नहीं हैआबाद किसी ने किया बरबाद किसी ने