बलभद्र के उस मण्डप में पधारने पर सारे ऋषिगणों ने खड़े होकर उनका सम्मान किया तथा अभ्यर्थना की, पर व्यास आसन पर बैठे रोमहर्षण उसी प्रकार निर्विकार भाव से व्यास गद्दी पर बैठे रहे।
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इसमें संदेह नहीं कि गिरसप्पा के प्रपात जैसे रोमहर्षण दृश्य के सामने यंत्रों, शक्ति के हॉर्स-पावर, बिजली के प्रकाश या कल-कारखानों के बारे में सोचना आत्मा को भूलकर बाहरी वैभव का ध्यान करने के बराबर है।
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रोमहर्षण सूत तथा शौनकादि ऋषियों के संवाद के रूप में आरम्भ होनेवाले इस पुराण में सर्वप्रथम सूतजी ने पुराण-लक्षण एवं अट्ठारह महापुराणों तथा उपपुराणों के नामों का परिगणन् करते हुए भगवान के कूर्मावतार की कथा का सरस विवेचन किया है।
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रोमहर्षण सूत तथा शौनकादि ऋषियों के संवाद के रूप में आरम्भ होनेवाले इस पुराण में सर्वप्रथम सूतजी ने पुराण-लक्षण एवं अट्ठारह महापुराणों तथा उपपुराणों के नामों का परिगणन् करते हुए भगवान के कूर्मावतार की कथा का सरस विवेचन किया है।
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सारे ऋषियों ने मिलकर एक दिन विचार किया कि खाली समय को बिताने के लिए भगवान वेद व्यास द्वारा आविष्कृत पुराण पर अपना विचार बताया तो व्यास जी बड़े प्रसन्न हुए और कहा, ‘‘ पुराण गाथाओं का ज्ञान प्राप्त करने के लिए आप लोग रोमहर्षण को यज्ञ-स्थल पर आसन देकर अपना खाली समय बिताने हेतु नवीन ज्ञान को प्राप्त करें।
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रोमहर्षण, क्षत्रिय पिता तथा ब्राह्मणी माता से सूत कुलोत्पन्न, व्यासकृत आद्यपुराण की छह संहिताओं का निर्माता, पुराणकथन के लिए ऋषियों द्वारा गौरवान्वित, अपनी रोमांचित कर देनेवाली वक्तृत्वशक्ति के कारण लोमहर्षण अथवा रोमहर्षण कहलाया जो नैमिषारण्य में शौनक आदि ऋषियों द्वारा आयोजित द्वादशवर्षीय सत्र के क्रम में कथावाचन के समय पधारे बलराम को, व्रतस्थ होने से उत्थापन न दे सकने के कारण आषाढ़ शुक्ल द्वादशी के दिन उनके द्वारा मारा गया।
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रोमहर्षण, क्षत्रिय पिता तथा ब्राह्मणी माता से सूत कुलोत्पन्न, व्यासकृत आद्यपुराण की छह संहिताओं का निर्माता, पुराणकथन के लिए ऋषियों द्वारा गौरवान्वित, अपनी रोमांचित कर देनेवाली वक्तृत्वशक्ति के कारण लोमहर्षण अथवा रोमहर्षण कहलाया जो नैमिषारण्य में शौनक आदि ऋषियों द्वारा आयोजित द्वादशवर्षीय सत्र के क्रम में कथावाचन के समय पधारे बलराम को, व्रतस्थ होने से उत्थापन न दे सकने के कारण आषाढ़ शुक्ल द्वादशी के दिन उनके द्वारा मारा गया।