मैं खोजती हूँ तुम्हारे चेहरे में एक पुराना चेहरा एक बीता हुआ समय जहाँ मुट्ठी भर कँचे थे पतंग की लटाई थी छिले हुये घुटने थे फटी हुई कमीज़ थी मुचडी हुई फ्रॉक थी जेब में मुसा हुआ टॉफी का सीला हुआ टुकडा था जिसे इंच इंच बराबर हर झगडे के बावजूद बाँट कर खाया था
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एक नंबर की झूठी हूँ...मेरी किसी बात का यकीन मत करो...वैसे तुम्हें बता दूं, घर के सामने नारियल के पेड़ पर एक पतंग अटकी हुयी है, पर्पल कलर की...उसे देख कर मांझे याद आये और उससे कटी उँगलियाँ...खून बहे तो तुम फ़िल्मी अंदाज़ में मेरी उँगलियाँ चूम लोगे या कि पतंग बचाने को मंझा और लटाई मेरे हाथ से ले लोगे? कौन ज्यादा प्यारी रे, मैं कि पतंग?
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खून बहे तो तुम फ़िल्मी अंदाज़ में मेरी उँगलियाँ चूम लोगे या कि पतंग बचाने को मंझा और लटाई मेरे हाथ से ले लोगे? कौन ज्यादा प्यारी रे, मैं कि पतंग? ये वाला एक्सपेरिमेंट भी करके देखें? या कि बॉडी डबल को शैम्पेन के गिलास से निकालें और बोलें कि चिरकुट एक काम नहीं की लाइफ में, चलो एक ठो निम्बू पानी बना के लाओ तो...