हालांकि इस अनुमान पर विशेष विभाजन होता रहा है कि लाल ज्वार का कारण क्या है, ये विषाक्त शैवाल के कारण होता है या प्रदूषण के कारण इसका अभी तक कोई सबूत नहीं है, जो भी हो इसकी अवधि में या लाल ज्वार की आवृत्ति में बढ़ोतरी हुई है.
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धरती का गीत कहां गया हमारा सूर्य, और मौसम कहां बिला गई बरखा हमारी और प्रसन्नताएं सपने? उन्हें तो होना था हमारे लिए वे हमारे थे.... कहां हैं वे कालखण्ड...वह ज़मीन...वे खेत जो हमारे ही तो थे? क्या हम हो गए इतने जड़-प्रस्तर कि हमें नहीं दीखते नदियों के रक्तिम किनारे और समुद्रों का लाल ज्वार? क्या वह हमारा ही रक्त नहीं है? आह!... अरे ओ बूढ़े! तुम रोते हो अपने पुत्र की हत्या पर धरती के अगणित लाल सूली चढ़ा दिए गए युद्धों ने जला दी पृथ्वी की कोख महसूस करो इसे, आह!