कमर में यज्ञोपवीत पहनने वाला प्रजापति यानि अब का मृगशिरा काममोहित हो कर अपनी पुत्री यानि आकाश के रोहिणी नक्षत्र की ओर दौड़ा तो व्याध यानि किरात रुद्ररूपी लुब्धक ने उसका सिर काट डाला।
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इसी स्थान पर इन्द्र रूपी लुब्धक द्वारा आकाशगंगा रूपी फेन के अस्त्र से वृत्र रूपी वर्षा का ध्वंश और उसके पश्चात पूजित होना, शीत अयनांत से प्रारम्भ नवसत्र के प्रारम्भ का रूपक है।
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कुछ तारे अतिप्रकाशित होने के कारण अतिप्रसिद्ध हैं तथा उनके नाम तारामंडलों के संदर्भ के बिना भी जाने जा सकते हें, जैसे लुब्धक (Sirius), मघा (Regulus), चित्रा (Spica) आदि।
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इस विशिष्टता के साथ दक्षिणी आकाश में अयन वृत्त से अत्यधिक दूरी, लुब्धक और मृगशिरा के साथ विशिष्ट संयोजन और वर्षा ऋतु के समापन के साथ दक्षिणी आकाश में उदय आदि जुड़ कर इसे महत्त्वपूर्ण बना जाते हैं।
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सुदूर आकाशगंगा में कर्क राशि के अन्तर्गत पुनर्वसु एवं पुष्य नक्षत्र के मध्य अपनें सूर्य से अतिदीर्घ (अपनें एक लाख सूर्य उसमें समा जाएँ) एक ‘ लुब्धक बन्धु ' नाम का तारा पुंज है जिसके प्रमुख तारे को वेद में ‘ ब्रह्मणस्पति ' कहा गया है।
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सबसे बड़ा प्रश्न यह कि एक साधारण ग्रामीण क्षितिज के पास देर रात अल्प समय उगने वाले तारे को क्यों कर पहचानेगी तब जब कि आकाश में तेज चमकता लुब्धक तिनजोन्हिया जैसे एकदम से पहचान में आ जाने वाले नक्षत्र के साथ विराजमान हो? भूख से तड़प रही है या गणित ज्योतिष पढ़ने बैठी है?
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क्या दिया-लिया? जैसे जब तारा देखा सद्यःउदित-शुक्र, स्वाति, लुब्धक-कभी क्षण-भर यह बिसर गया मैं मिट्टी हूँ ; जब से प्यार किया, जब भी उभरा यह बोध कि तुम प्रिय हो-सद्यःसाक्षात् हुआ-सहसा देने के अहंकार पाने की ईहा से होने के अपनेपन (एकाकीपन!) से उबर गया।