मेरी माँ श्रीमती उर्मिला सिंह की उम्र 80 वर्ष और मैं उनकी प्रथम संतान, 37 वर्ष के लेखन काल में कभीं अश्लीलता की तरफ (माँ के भय से) ध्यान ही नहीं गया।
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वे स्पष्ट देख पा रहे थे कि अपने सम्पूर्ण लेखन काल के अस्त होते दौर में और भविष्य में भी चर्चा से बाहर हो जाने की आंशकाओं ने उन्हें भी वैसे ही ग्रसित किया हुआ है।
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जंबू की हस्तलिखित पुस्तकों की सूची में साहित्य दर्पण की एक हस्तलिखित प्रति का उल्लेख मिलता है, जिसका लेखन काल १ ३ ८ ४ ई. है, अत: साहित्य दर्पण के रचयिता का समय १ ४ वीं शताब्दी ठहरता है।
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इन सबकी कविताओं पर पूर्व खंडों की भॉंति डॉ. कामेश् वर पंकज ने समीक्षात् मक आलेख लिखा है, जिसमें उनका निष् कर्ष है-'' सातों रचनाकारों ने अपनी लेखनी पॉंचवे-छठे दशक में आरंभ की है और शताब् दी के अंत तक उनका लेखन काल फैला हुआ है।
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मेरे ५ साल के लेखन काल में करीब ७ ५ ० ख़त मुझे मिले, जबकि मैं नियमित नहीं लिखा करती थी... ” hmmmmm.... अच्छे लेखक की यही पहचान होती है कि वो अपनी बात इशारों में समझा दे:) अनियमित लेखन पर ७ ५ ० खत, तो नियमित लेखन होता तब???:):) बहुत दिलचस्प पोस् ट.
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42 साल की उम्र में उनका दुनिया से चले जाना दक्षिण एशियाई ही नहीं, वरन दुनिया भर के साहित्य के लिए एक अपूरणीय क्षति थी | फिर भी अपने बीस साल के लेखन काल में उन्होंने जितना कुछ किया और लिखा, वह हमारे लिए एक अमूल्य धरोहर है, जिसके आईने में इतिहास और वर्तमान के कई सफ़े बहुत साफ़ साफ पढ़े जा सकते हैं |
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वनमाली जी के लेखन काल को मैं दो हिस्सों में बांटकर देख पाता हँू, उनमें से पहला 1934 से 1950 के बीच का समय, जब उन्होंने रोमांटिक दृष्टि संपन्न या आदर्शवाद से प्रेरित कहानियां लिखीं और दूसरा 1950 से 1965 के बीच का लेखन काल जब उन्होंने स्वतंत्रता के बाद की विसंगतियों पर, समाज में उभरते भ्रष्टाचार पर, तथा व्यक्तित्व के विभाजन पर, अपने व्यंग्यों के माध्यम से चुटीले प्रहार किये ।
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वनमाली जी के लेखन काल को मैं दो हिस्सों में बांटकर देख पाता हँू, उनमें से पहला 1934 से 1950 के बीच का समय, जब उन्होंने रोमांटिक दृष्टि संपन्न या आदर्शवाद से प्रेरित कहानियां लिखीं और दूसरा 1950 से 1965 के बीच का लेखन काल जब उन्होंने स्वतंत्रता के बाद की विसंगतियों पर, समाज में उभरते भ्रष्टाचार पर, तथा व्यक्तित्व के विभाजन पर, अपने व्यंग्यों के माध्यम से चुटीले प्रहार किये ।