उन्होंने इसमें भारत सरकार को देश की तमाम लोक-भाषाओं के विकास के लिए ' भारतीय लोक-भाषा साहित्य अकादमी बनाने का सुझाव दिया है.
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इसकी रचना में लोक-भाषा का प्रयोग और शैली में विनोद एवं व्यंजना पूर्ण उक्तियाँ रस को विलक्षण स्वरूप प्रदान कर मन का रंजन करती हैं।
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लोक-शैली और लोक-भाषा में रचित नचारियाँ मन का रंजन करती हुई, जन-जीवन में इतनी रमी हैं कि तीज-त्यौहार, सामाजिक और धार्मिक उत्सव.
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बहरहाल, बस्तर की लोक-भाषा हल्बी में प्रस्तुत इस गीत में वर्षा के आगमन के साथ ही अन्तस्तल में उठ रहे विभिन्न मनोभावों को प्रकट किया गया है।
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दोहा दरअसल दर्शन को समेटकर उसे संक्षिप्त कर जन-साधारण तक पहुँचाने के लिए लिखा जाता था, इसकी भाषा लोक-भाषा होती थी पर इसके अर्थों की कई पर्तें होती थीं।
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बद्रीनारायण और बोधिसत्त्व के पहले संग्रहों में यह बात एक सी है कि दोनों कवि लोक के पास जाते हैं, लोक-भाषा से अपनी कविता का खाका बुनते हैं।
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दोहा दरअसल दर्शन को समेटकर उसे संक्षिप्त कर जन-साधारण तक पहुँचाने के लिए लिखा जाता था, इसकी भाषा लोक-भाषा होती थी पर इसके अर्थों की कई पर्तें होती थीं।
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लोक-भाषा अथवा लोक-विश्वासों के संबलबिना, जिस प्रकार गीत, कथा अथवा लोक-गाथा, अर्थ-~ हीन एवं खोखले हैं, उसी प्रकारबिना गति अथवा आंगिक चेष्टाओं के गीत, विशेषकर लोक-नाटक का कोई महत्त्व नहीं.
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दोहा दरअसल दर्शन को समेटकर उसे संक्षिप्त कर जन-साधारण तक पहुँचाने के लिए लिखा जाता था, इसकी भाषा लोक-भाषा होती थी पर इसके अर्थों की कई पर्तें होती थीं।
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इसकी रचना में लोक-भाषा (देसिल बयना) का प्रयोग और शैली में विनोद एवं व्यंजना पूर्ण विदग्धता, रस को विलक्षण स्वरूप प्रदान कर मन का रंजन करती हैं.