देवनागरी लिपि में ये सबसे क़रीबी संस्कृत के वर्णाक्षर के नीचे नुक़्ता (बिन्दु) लगाकर लिखे जाते हैं किन्तु आजकल हिन्दी में नुक्ता लगाने की प्रथा को लोग अनावश्यक मानने लगे हैं और ऐसा माना जाने लगा है कि नुक्ते का प्रयोग केवल तब किया जाय जब अरबी/उर्दू/फारसी वाले अपनी भाषा को देवनागरी में लिखना चाहते हों।
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रघुवीर सहाय के रामदास के लिए गाड़ी की काया में आत्मा-सा सिमटा यह आदमी जीवन के रंगों को अर्थ नए देता, भाषा के वर्णाक्षरों के सहारे मापता ज्ञान के समस्त भुवन तीन ही रंग जीवन के, पीला हरा लाल, बस, तीन ही वर्णाक्षर भाषा के तीन ही से अक्सर काम लेता है चला लेता है …
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& O. E. ये नाम हमने सिर्फ़ उनके लिये हैं जो आसपास हैं, दूर की नजर हमारी शुरू से ही कमजोर है:) हम ऐंवे ही इनके लेखन की तारीफ़ किये रहते हैं, विद्वान लोगों ने जो कहीं इनका नाम अ से न शुरू करके किसी और वर्णाक्षर से किया होता तो पता चलता इन्हें आटे दाल का भाव।
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देवनागरी लिपि में ये सबसे क़रीबी संस्कृत के वर्णाक्षर के नीचे नुक़्ता (बिन्दु) लगाकर लिखे जाते हैं किन्तु आजकल हिन्दी में नुक्ता लगाने की प्रथा को लोग अनावश्यक मानने लगे हैं और ऐसा माना जाने लगा है कि नुक्ते का प्रयोग केवल तब किया जाय जब अरबी / उर्दू / फारसी वाले अपनी भाषा को देवनागरी में लिखना चाहते हों।