ये दीगर बात है कि बाबाजी अपने आश्रम द्वारा तैयार किए गए आयुर्र्वैदिक उत्पादों को दान में नहीं देते हैं, उन बहुमूल्य वस्तुओं का मूल्य लेते हैं ।
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यह कैसे होगा? जनता समझ चुकी है कि सभी वस्तुओं का मूल्य निर्धारण केंद्र से होता है और अभी बढ़ी महंगाई के लिए केंद्र की यूपीए सरकार दोषी है।
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जिन प्रमुख प्राथमिक वस्तुओं का मूल्य 40 से 60 प्रतिशत बढ़ा है, उनका भार केवल 22 प्रतिशत और प्रौद्योगिकी प्रतिस्पर्धा के कारण जिन विनिर्मित उत्पादों का मूल्य स्थिर या कम होता है।
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सवाल उठता है कि वस्तुओं का मूल्य तो बाज़ार तय कर देता है, लेकिन इंसान का मूल्य कैसे तय हो? गेहूं की सप्लाई घट गई तो उसकी कीमत बढ़ जाती है।
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केंद्रीय बैंक ने एक बयान में कहा, ” वैश्विक तेल कीमतों में गिरावट और इस्पात उद्योग की बदतर स्थिति के बीच विनिर्मित वस्तुओं का मूल्य माह दर माह आधार पर 0.6 फीसदी गिरा।
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मारे गए छापों की संख्या १, २४, ६१४गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों की संख्या ८, ९६०जिन व्यक्तितों पर मुकद्दमें चलाए गए उनकी संख्या ३, ८१३जिन व्यक्तियों को सजा दी गई उनकी संख्या १, ०८४जब्त की गई आवश्यक वस्तुओं का मूल्य ९, ५१७ करोड़ रु.
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जहां आधार वर्ष 2004-0 5 में खाद्यान्नों एवं दूसरी मूलभूत आवश्यक वस्तुओं का थोक बाजार सूचकांक 100 था वहीं दिसंबर, 2010 में इनका सूचकांक 188.9, ईंधन और ऊर्जा का 150.1 तथा औद्योगिक वस्तुओं का मूल्य सूचकांक 128.9 हो गया।
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यदि देश में सभी वस्तुओं का मूल्य बढ़ रहा है, चारो ओर महंगाई बढ़ रही है, तो ऐसी स्थिति में किसानों द्वारा उत्पादित अनाज को कृत्रिम तरीके से क्यों सस्ता रखा जा रहा है, इसका जवाब सरकार के पास नहीं है।
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जबकि गाँधीजी श्रम के मूल्य सिध्दांत तक को नहीं मानते हैं क्योंकि उनका कहना है कि वस्तुओं का मूल्य उसमें लगा श्रम के आधार पर तय कर यानि श्रम को सम्पति के रुप में प्रतिस्थापित कर मजदूरों की प्रतिष्ठा को दरकिनार कर दिया गया।
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एज़्टेक साम्राज्य में इसकी केन्द्रीय रूप से नियंत्रित अर्थव्यवस्था के साथ, सभी वस्तुओं का मूल्य मानक था और किसी भी वस्तु को किसी भी अन्य वस्तु के बदले में आधिकारिक मूल्य पर विनियमित किया जा सकता था (बर्नल दियाज देल कैस्टिलो, ला कौन्क्विस्ता दे न्युएवा एस्पना).