इस मन्त्र से अगले मन्त्र में, उसी आत्मा की वाक् शक्ति को गौरी कहा गया है जो उक्त '' समानम् उदकम् '' को अनेक ('' सलिलानि '') में परिणत करती हुई एकपदी, द्विपदी, चतुष्पदी, अष्टापदी और नवपदी हो जाती है, यद्यपि वह मूलतः परम व्योम में स्थित सहस्राक्षरा वाक् है-
32.
चार मुखी रुद्राक्ष ब्रम्हा जी का स्वरुप है | रुद्राक्ष पहनने से अनेक देवता प्रसन्न होते है | जो लोग उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते है | उनको चार मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए | जिस जिस यक्ति की स्मरण शक्ति क्षीण हो वाक् शक्ति कमजोर हो मंद बुद्धि को भी चार मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए |
33.
इस महाविद्या को मात्र स्तभन की विद्या मानना उचित नहीं हैं, आर्थिक सम्पन्नता प्राप्त करके के लिए, स्मरण शक्ति अपनी बढ़ाने के लिए, और वाक् शक्ति में अपूर्व क्षमता लेन के लिए भी इन महाविद्या की साधना उपयोगी हैं जो चाहते हैं की वे जब बोले तो सारी सभा मन्त्र मुग्ध हो कर सुनती रहे, उन्हें तो यह साधनसम्पन्न करनी ही चाहिए.
34.
पिता को चाहिए कि शुभ्र वस्त्र धारण करके अपने पुत्र को अपने पास बुलाये और उससे कहे-' हे पुत्र! मैं तुम्हें अपनी वाक् शक्ति, अपने प्राण, अपने नेत्र, अपने कान, अपने रसास्वादन, अपने समस्त श्रेष्ठ कर्म, अपने सुख-दु: ख, अपनी मैथुनजन्य शक्ति तथा रति-सुख, अपनी गतिशीलता, अपनी समस्त इच्छाएं, अपनी बुद्धि, अपना यश, ब्रह्मतेज औ अपना श्रेष्ठ स्वास्थ्य तथा अन्न को पचाने की शक्ति आदि सभी सद्गुण प्रदान करता हूं या तुम्हारे भीतर प्रतिष्ठित करता हूँ।