वाग्दान से सगाई, प्रदान-से कन्यादेय-या कन्या को दिए जाने वाले उपहार, वरण-यानी वर द्वारा स्वीकृत करना, पाणिपीडन-पाणिग्रहण करना तथा सप्तपदी-से सात वचनों के पालन की प्रतिबद्धता का भाव लिया जाता है।
32.
वाग्दान (तिलक) के बाद और विवाह से पहले कन्या का अशौच पिता और पति दोनों कुल में तीन दिन का लगता हैं और विवाह हो जाने पर सिर्फ पति कुल को ही दस दिन का अशौच होता है।
33.
इस समय मगध में वाग्दान का महत्त्व केवल सामान्य सामाजिक विवाहपूर्व अनुबंध के रूप में है न कि पहले की तरह जब बंगाल एवं मिथिला में वाग्दान के बाद वर की मृत्यु हो जाने पर भी कन्या को विधवा मान लिया जाता था।
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इस समय मगध में वाग्दान का महत्त्व केवल सामान्य सामाजिक विवाहपूर्व अनुबंध के रूप में है न कि पहले की तरह जब बंगाल एवं मिथिला में वाग्दान के बाद वर की मृत्यु हो जाने पर भी कन्या को विधवा मान लिया जाता था।
35.
दाँत निकलने पर प्रथम वर्ष में ही मुंडन से प्रथम ही मरने पर एक दिन में और उसके बाद मुंडन हो जाने पर तीन वर्ष पर्यन्त तीन दिन में पुत्र का और कन्या का तो वाग्दान से पहले मुंडन न होने तक स्नान मात्र से ही और मुंडन हो चुकने पर एक दिन में अशौच निवृत्त हो जाता है।