वादीगण ने धारा 17 में जो अनुतोष की मॉग किया है कि विक्रय विलेख पत्र अवैध निष्प्रभावी व शून्य घोषित किया जाये बिलकुल गलत है क्योकि धारा 34 विशिष्ट अनु0 अधि0 के अन्तर्गत किसी अभिलेख के अवैध घोषित कराना है तो परिणामिक अनुतोष की भी मॉग करनी चाहिए जो नही किया गया है अतएवं वादीगण किसी भी अनुतोष को प्राप्त करने के अधिकारी नही है।
32.
अपीलार्थीगण ने संक्रमणीय भूमिधरी भूमि खसरा नं0 284 / 3 मौजा अजबपुर खुर्द, परगना केन्द्रीय दून जिला देहरादून क्षेत्रफल 0.62 एकड़ पूर्व स्वामी विक्रम सिंह पुत्र दलीप सिंह से पंजीकृत विक्रय विलेख दिं0 2.7.1981 से क्रय की जिसका 0.50 एकड़ भाग बाईपास रोड के निर्माण हेतु सरकार द्वारा अधिग्रहित किया गया और मुआवजा अपीलार्थीगण को दे दिया गया और शेष भूमि क्षेत्रफल 0.12 एकड़ अपीलार्थीगण के पास बची।
33.
विक्रय विलेख दिनांकित 25. 2.2000 में दीवानी वाद संख्या 4/2000 के वादी उमेश चन्द्र मिश्रा को को विक्रीत भूमि अलग से डिमारकेट कर उल्लिखित है, अतः दोनो वादों की विषय वस्तु भिन्न हो जाती है तथा दीवानी वाद संख्या 4/2000 में जो पक्षकार हैं, वे दीवानी वाद संख्या 34/2004 में प्रतिवादीगण हैं तथा जो दीवानी वाद संख्या 34/2004 में वादीगण हैं, वे दीवानी वाद संख्या 4/2000 में पक्षकार नहीं हैं।
34.
उक्त लोगों द्वारा कूटरचना से तैयार कराए गए उक्त भूमि के पंजीयन के लिए उपपंजीयक कार्यालय में दलालों से संपर्क किया गया तब दलालों द्वारा उपपंजीयक प्रभारी से बात तय कर उक्त फर्जी व कूटरचित विक्रय विलेख का पंजीयन प्रभारी द्वारा बिना दस्तावेजों के परीक्षण किये ही अनुचित लाभ प्राप्त कर पंजीयन क्रमांक 1512 दिनांक 0 1 / 0 4 / 2013 कर दिया गया जो अपराधिक कृत्य की श्रेणी में आता है।
35.
के ल न दे व बनाम कन्हई साहू व अन्य में हिन्दू विधि के अर्न्तगत वैध आवश्कता पर प्रकाश डालते हुये अवधरित किया गया है कि संरक्षक द्धारा किये गये विक्रय के समर्थन में वैध आवश्यकता थी यह अन्तरिती द्धारा साबित की जायेगी विक्रय विलेख में वैध आवश्यकता सम्बन्धी कथन स्वयं में वैध आवश्कता को साबित नहीं करते जो कि सम्पत्ति के विषय में कानून की निगाह में गम्भीर एवं समुचित हो सकता है।
36.
124 / 1 रकवा 0.400 हे 0 जो दुलारे, श्रीनिवास और श्रीलाल बैगा के पट्टे की भूमि थी उक्त भूमि को ग्राम ढोंगा निवासी रंगलाल साहू के द्वारा साजिश रचकर श्रीनिवास व उसके भाई श्रीलाल को तहसील देवसर में लाकर बटनवारा कराने का झांसा देकर सीताराम पिता भगवत साहू व अब्दुल नईम पिता बसारत बक्स के साथ मिलकर अन्य जिले के निवासी व्यक्ति के नाम पर पूरी की पूरी भूमि का विक्रय विलेख लिखा कर उन्हें भूमिहीन बना दिया।
37.
प्रत्यर्थी ने जानबूझकर व बदनियती से अपीलार्थी सं0 1 लक्ष्मण प्रसाद भट्ट के नाम के स्थान पर गलत नाम लक्ष्मी प्रसाद भटट अंकित किया है व प्रत्यर्थी इसका नाजायज लाभ उठाने का प्रयास कर रहा है जबकि वाद पत्र की चरण सं0 1 में वर्णित भूमि अपीलार्थीगण की बड़ी भूमि क्षेत्रफल 0. 62 एकड़ पुराना खसरा नं0 284/3 मौजा अजबपुर खुर्द, तहसील सदर, परगना केंद्रीयदून जिला देहरादून का ही एक भाग है जिसे अपीलार्थीगण ने पंजीकृत विक्रय विलेख दिं0 2.7.1981 से क्रय किया।
38.
दिनांक 5. 11.2002 को इसकी उपस्थिति में ग्राम पंचायत, पोमावा में प्रदर्श पी. 18 में वर्णित प्रस्ताव संख्या 5 पारित किया गया था कि पूर्व में ग्राम पंचायत ने दिनांक 15.8.2002,2.10.2002 व 22.9.2002 को पंचायत की आर्थिक स्थिति सुधारने हेतु पंचायत क्षैत्र में जारी पट्टों एवं विक्रय विलेख के नियमन पर 500/-रू0 भेंट-चन्दा के रूप में वसूल किए जाये, इस कारण मोहनसिंह पुत्र मूलशंकर राजपुरोहित (परिवादी) से भेट-चन्दा की वसूली की गई थी किन्तु उसने ग्रामसेवक (अभियुक्त) के विरूद्ध रिश्वत लेने का निराधार आरोप लगाया है।
39.
इस वाद में विद्वान अवर न्यायालय को केवल यह तथ्य विनिश्चित करना था कि क्या विवादित सम्पत्ति के स्वामी व अध्यासन में वादी / अपीलार्थी थे, किन्तु विद्वान अवर न्यायालय द्वारा इस तथ्य को निर्णीत न करते हुए विक्रय विलेख 10क व नक्शा-नजरी के आधार पर विवादित मकान अक्षर क, ख, ग, घ के पश्चिम तरफ स्थित मकान दूधनाथ के स्थान पर प्रश्नगत विलेख की तिथि पर हुबलाल व भग्गू लाल का मकान नहीं था और इसप्रकार विद्वान अवर नयायालय ने प्रश्नगत मकान का स्वामी व काबिज वादी/अपीलार्थी को नहीं माना था।