तत्वज्ञानी पुरुषों के अनुसार पाताल विराट भगवान के तलवे, रसातल उनके पंजे, महातल उनकी एड़ी के ऊपर की गाँठें, तलातल उनकी पिंडली, सुतल उनके घुटने, वितल और अतल उनकी जाँघें तथा भूतल उनका पेडू है।
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ये पाताल लोक इस प्रकार से हैं:-# अतल # वितल # नितल # गभस्तिमान # महातल # सुतल # पाताल सुन्दर महलों से युक्त वहां की भूमियां शुक्ल, कृष्ण, अरुण और पीत वर्ण की तथा शर्करामयी (कंकरीली), शैली (पथरीली) और सुवर्णमयी हैं।
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(i) अतल (ii) वितल (iii) नितल (iv) गभस्तिमान (v) महातल (vi) सुतल (vii) पाताल सुन्दर महलों से युक्त वहां की भूमियां शुक्ल, कृष्ण, अरुण और पीत वर्ण की तथा शर्करामयी (कंकरीली), शैली (पथरीली) और सुवर्णमयी हैं।
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यंत्र का बिंदुचक्र सत्यलोक, त्रिकोण तपोलोक, अष्टकोण जनलोक, अंतर्दशार महर्लोक, बहिर्दशार स्वर्लोक, चतुर्दशार भुवर्लोक, प्रथम वृत्त भूलोक, अष्टदल कमल अतल, अष्टदल कमल का बाह्य वृŸा वितल, षोडशदल कमल सुतल, वृŸात्रय या त्रिवृŸा तलातल, प्रथम रेखा भूपुर महातल, द्वितीय रेखा भूपुर रसातल और तृतीय रेखा भूपुर पाताल है।
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ईश्वर नहीं है ऐसा वही आदमी कह सकता है, जिसने ईश्वर की खोज के लिए चौदह भुवन छान मारे हों, पृथ्वी के कण-कण की, अणु-परमात्मा की जाँच कर ली हो, अतल, वितल, तलातल, रसातल, पाताल आदि सब लोक-लोकान्तर जाँच लिये हों, जो सृष्टि के आदि में हो और सृष्टि के अंत के बाद भी रहा हो।
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लेकिन किस उपकरण क़ी सहायता से “ अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल एवं पाताल ” नामक सात महाद्वीपों क़ी खोज हजारो-हजारो साल पहले ही कर दी गयी थी? क्या अंग्रेजी में कॉन्टिनेंट कह देने से यह प्रामाणिक हो गया और हिंदी में महाद्वीप कह देने से यह निराधार हो गया? देखें-सप्तार्णवाः सप्त कुलाचालाश्च सप्तर्षयो द्वीप वनानि सप् त.
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गोलोक के नीचे ब्रह्मा का निवास सत्यलोक, तपलोक, जनलोक, महलोक, स्वलोक, भुवलोक, भूलोक, नामक सात ऊर्ध्वलोक, तथा भूलोक के नीचे अधोलोक कहलानेनाले अतल, वितल, सुतल, रसातल, तलातल, महातल और पाताल लोक ये सातों मिलाकर चौदह लोकों के ऊपर विश्व के शिवराग्र पर ध्रुव समस्त दिशाओं के लिए दिशासूचक बनकर अचल पद नक्षत्र के रूप में प्रकाशमान रहते हैं।
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कृति के आरंभ में सुप्रसिद्ध कवि एवं प्रखर साहित्य मर्मज्ञ श्री नंद किशोर नौटियाल, अध्यक्ष, 'महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी' ने प्रसन्नता व्यक्त की है कि कवि कुलवंत सिंह ने विभिन्न भावों और विचारों को पैनी दृष्टि से परखा है और नई कविता लिखी है जो भावना के स्तर पर गीत के समान है और मंगलकामना की है कि गहराइयों के अतल वितल में डुबकी लगाने की उनकी प्रतिभा उन्हे बहुत आगे ले जायेगी।
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अगले दिवस कहा राम को अगस्त्य ने-‘‘वीरवर! रण में प्रयाणपूर्व,पहले-विजय के हेतु करो पूजा तुम सूर्य की, क्षार-क्षार करता जो पातक-पहाड़ को, हरता अखर्व गर्व सर्व अन्धकार का अतल वितल रसातल तलातल का निज कर-किरणों से करता भरण जो, वही ब्रह्म, वही विष्णु, वही महादेव है, वही स्कन्द, प्रजापति, इन्द्र, यम, सोम है, वही वायु, वही वह्वि, वही वारि-निधि है, वही है गभस्तिमान, अग्निगर्भ, सविता, वही है हिरण्यरेता, वही दिवाकर है, वही विभु, तमोभेदी, महातेजा, मित्र है,
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षड़ज, ऋषभ, गांधोर, मध्यम, पंचम, धैवत तथा निषाद ये सात स्वर अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल ये सात तल मरीचि, अंगिरा, अत्रि, पुलह, केतु, पौलस्त्य और वैशिष्ठ ये सात ऋषि भू, भुवः स्वः, महः, जन, तप और सत्य नाम के सात लोकों गोरोचन, चंदन, स्वर्ण, शंख, मृदंग, दर्पण और मणि सात पदार्थ इन्द्रधनुष के सात रंग और सात समुद्र आज एक दिन बहुत सार्थक बीता ।