एक दिन चांदनी रात में समरसिंह विद्युल्लता के घर आया और अकेले में उससे मिलकर बोला ` ` मुझे लगता है कि अब थोड़े दिनों में ही चित्तौड़ मुगलों के हाथ में चला जायगा।
32.
भारत की एक बेटी विद्युल्लता ने अपने भावी पति के युद्धभूमि से लौट आने पर उसके सीने में कटार भौंक कर उसे दंड दिया और फिर उसी से अपनी इहलीला भी समाप्त कर ली थी।
33.
उस प्राणों का एक बुलबुला-भर पी लेने को-उस अनन्त नीलिमा पर छाये रहते ही जिस में वह जनमी है, जियी है, पली है, जियेगी, उस दूसरी अनन्त प्रगाढ़ नीलिमा की ओर विद्युल्लता की कौंध की तरह अपनी इयत्ता की सारी आकुल तड़प के साथ उछली हुई एक अकेली मछली।
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रानी ने अलग सुना: छँटती बदली में एक कौंध कह गयी-तुम्हारे ये मणि-माणिक, कंठहार, पट-वस्त्र, मेखला किंकिणि-सब अंधकार के कण हैं ये! आलोक एक है प्यार अनन्य! उसी की विद्युल्लता घेरती रहती है रस-भार मेघ को, थिरक उसी की छाती पर उसमें छिपकर सो जाती है आश्वस्त, सहज विश्वास भरी ।
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रानी ने अलग सुना: छँटती बदली में एक कौंध कह गयी-तुम्हारे ये मणि-माणिक, कंठहार, पट-वस्त्र, मेखला किंकिणि-सब अंधकार के कण हैं ये! आलोक एक है प्यार अनन्य! उसी की विद्युल्लता घेरती रहती है रस-भार मेघ को, थिरक उसी की छाती पर उसमें छिपकर सो जाती है आश्वस्त, सहज विश्वास भरी ।