इसी पुस्तक में (कुलुस्सियों 1:9-10) में वह प्रार्थना करता है-प्रार्थना!-“हमने तुम्हारे लिए प्रार्थना और यह विनती करना नहीं छोड़ा कि तुम समस्त आत्मिक ज्ञान और समझ सहित परमेश्वर की इच्छा की पहचान में परिपूर्ण हो जाओ... परमेश्वर के ज्ञान में बढ़ते जाओ।”
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इस कारणवश आपसे विनती करना चाहता हूँ की आप अगर अपने फ़ोन को भारत में लॉन्च करें तो इन बातों का ध्यान ज़रूर रखें, ताकि हम जैसे गरीब (यद्यपि शौकीन) लोग भी इस तकनीकी अजूबे का मज़ा उठा सकें १ कृपया कर किसी टुच्चे सर्विस प्रोविडर के साथ टाई उप न करें।
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वहां के सैकड़ों-हजारों लोगों ने मुझे सुबह रेलवे स्टेशन पर इकट्ठे होकर निवेदन किया कि आदरणीय लालू यादव जी से हमारी ओर से विनती करना कि आश्रम एक्सप्रैस को राजगढ़ रेलवे स्टेशन पर जाते और आते समय रुकवा दिया जाए यानी राजगढ़ पर आश्रम एक्सप्रैस का आते और जाते समय ठहराव किया जाए।
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अब इन हिंदुत्वनिष्ठोंका राष्ट्रप्रेम कहां गया? क्या वह वर्षाऋतुमें उगनेवाले भूछत्रोंसमान केवल चुनावके समय ही उभर आता है? संपादक) ५ ए. दीन होकर मुसलमान नेताओंको साध्वीद्वारा भोजनके लिए विनती करना: समापन होते ही साध्वी मुसलमान नेताओंसे अत्यंत दीन-हीन होकर विनती कर रही थी कि वे भोजन कर जाएं ।
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किसी परिवार में कोई शुभ कार्य सम्पन्न होना होता तो सबसे पहले सब लोग जाते बरम देवता की देहरी पर माथा टेकने कि भगवन अपनी कृपा बनाये रखना. सारा कार्य बिना किसी विपदा,बाधा के सकुशल संपन्न हो जाय और जाते जाते बरगद दादा के पैर पड़.चक्कर लगा,माथा टेक ये विनती करना न भूलते कि बरम देवता को संभाले रहियो.
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मन्दिर जाने का मुख्य प्रयोजन है परमात्मा की विनती करना और अपने आत्मा का परमात्मा से रिस्ता जोड़ना| और इस मार्ग में पंडे, पुजरि, मौलवी बजाय सहायता करने के बाधा डाल सकते है, लेकिंन एक सच्चा भक्त इन बाधाओं को पर कार फिर से भगवान के दर्शन को जायेगा ना की इन चुद्र विचार वाले पंडो से डर कर मन्दिर ही जाना छोड़ दे|
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एक विनती करना चाहता हूँ की जैसे १ ००० से १ ०००० हजार तीर एक साथ छोड़े जाते थे तो उसका अनुमान मैंने निकला की एक बड़े से तीर में जहर से भीगी हुई सुइयां भरी जाती थी और यह जब चलाया जाता था तो गुरुत्व बल के कारन ये सुनियाँ एक के पीछे गिरा करती थी तो ये बाकि हथियार भी विज्ञानं रखते होंगे
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मैं सभी हिंदी भाषियों, हिंदी प्रेमियों, हिंदी के प्रति जरा सा भी रुझान रखने वालों और प्रत्येक भारतीय से आज दशहरे के अवसर पर विनती करना चाहता हूँ कि ' इस और उस ' की लड़ाई से हिंदी के हक़ को क्षति न पहुंचाएँ और जैसे भी कर सकें, सब एक जुट होकरअपनी राजभाषा हिंदी को राष्ट्रभाषा का आधिकारिक दर्जा दिलवाने के लिए संकल्प करें।
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उन सबसे बस एक ही विनती करना चाहता हूँ कि वक्त रहते खुद को सुधार ले वरना जो ज़हर मेरे नशों में लहूँ बनकर दौड़ रहा हैं जिससे मैं रोज ना जी पाता हूँ न मर पाता हूँ, बस रोता हूँ, चिल्लाता हूँ, कभी नाचता हूँ और कभी गाता हूँ, यदि बाहर आ गया तो जाने कितने मासूम लोग मारे जायेंगे और मेरे प्यार भरे घर को उजाड़ने वाले खुदगर्ज लोग अपने घरों में चैन से नहीं रह पाएंगे.