ऐसी दशा में यदि कोई विशेष वचन किसी कन्यादान आदि विशेष दान के स्वीकार की आज्ञा देता हैं तो उससे उस सामान्य निषेध का विशेष अंश में संकोच होकर यह तात्पर्य सिद्ध होगा, कि कन्यादानादि से भिन्न दानों का स्वीकार शास्त्र निषिद्ध हैं, क्योंकि सामान्य शास्त्र को विशेष शास्त्र बाँध लेता हैं।