शिष्य का तीसरा लक्षण है-जो ज्ञान के मार्ग पर बहना चाहता है, बरसना चाहता है, फैलना चाहता है, विस्तृत होना चाहता है।
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यानी उसकी सोच का दायरा विस्तृत होना चाहिए, संकुचित या छोटा नहीं, तभी बिना भेदभाव के सबका भला सोचा और किया जा सकता है।
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शिष्य का तीसरा लक्षण है-जो ज्ञान के मार्ग पर बहना चाहता है, बरसना चाहता है, फैलना चाहता है, विस्तृत होना चाहता है।
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मेरी राई में इसे और्र ज़्यादा विस्तृत होना चाहिए ताकी इस बारे में पूरी जानकारी मिल सके और किताब के बारे मे एक राय बन सके.
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यानी उसकी सोच का दायरा विस्तृत होना चाहिए, संकुचित या छोटा नहीं, तभी बिना भेदभाव के सबका भला सोचा और किया जा सकता है।
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[...] बहुत कुछ वेबसाइटों है कि नीचे, हमारे दृष्टिकोण से विस्तृत होना होगा निस्संदेह अच्छी तरह से कर रहे हैं बाहर [...] जाँच के लायक......
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जैसे पानी का स्वभाव ही है नीचे की ओर बहना, हवा का स्वभाव है दबाव में न रहना, वैसे ही चेतना का स्वभाव है विस्तृत होना और शांत रहना।
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किंतु यत: विभिन्न प्रकार की योग्यताओं का ठीक ठीक निर्धारण निश्र्चित रूप से कठिन है, अत: बुद्धि की किसी भी परिभाषा का इतना अधिक विस्तृत होना अनिवार्य है कि उसका बहुत व्यावहारिक महत्व नहीं रह जाता।
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किंतु यत: विभिन्न प्रकार की योग्यताओं का ठीक ठीक निर्धारण निश्र्चित रूप से कठिन है, अत: बुद्धि की किसी भी परिभाषा का इतना अधिक विस्तृत होना अनिवार्य है कि उसका बहुत व्यावहारिक महत्व नहीं रह जाता।
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किंतु यत: विभिन्न प्रकार की योग्यताओं का ठीक ठीक निर्धारण निश्र्चित रूप से कठिन है, अत: बुद्धि की किसी भी परिभाषा का इतना अधिक विस्तृत होना अनिवार्य है कि उसका बहुत व्यावहारिक महत्व नहीं रह जाता।